शनिवार, 18 अगस्त 2012

दिल्ली केर" असाम" बनेबाक षड्यंत्र : गोपाल प्रसाद

म्यामांरक मुस्लिम सभक नाम पर बंग्लादेशसं भारत में घुसपैठ  करनिहार कें शरणार्थीक दर्जा दिलैबाक प्रयास 
               भारतमे रहिक भारत विरोधी तत्व कोन-कोन तरहे देश- विरोधी काज क रहल अछि. इ तत्व गत दिन लगभग  पचीस सय लोकनि कें ल क नव दिल्ली केर वसंत विहार स्थित युनाईटेड नेशंस हाईकमिश्नर फॉर रिफ्यूजी (यू.एन.एच.सी.आर.) केर कार्यालय कें सोझा पहुंचल . यू.एन.एच.सी.आर. केर अधिकारी लोकनि कें बतौलानि जे इ लोकनि म्यामांर केर नादर्न रेखिन स्टेट सं आयल छथि आ रियांग मुस्लिम छथि. म्यामांर केर सरकार इ लोकनि कें ओतय सं खहेड देने अछि . एहि लेल इ लोकनि  बंगलादेश  देने भारत आयल छथि, हिनका शरणार्थीक दर्जा देल जाय. एहि मांगक संग इ सभ लोकनि वसंत विहारक सड़क आ पार्क सभ पर कब्ज़ा करि के दिन धरि जमल रहलाह. हुनक हरकत सं स्थानीय निवासी लोकनि परेशान भ गेलाह आ ओ सभ हिनका लोकनि  कें वसंत विहार सं बाहर करेबाक मांग कयलनि . एकर उपरान्त ६ मई २०१२ कें दिल्लीक किछु मुस्लिम नेता आ मुल्ला मौलवी सभक शह पर प्रशासन इ सभ लोकनिकें वसंतकुंज केर समीप रंगपुरी पहाडी पर राते-रात पहुंचा देलनि. ओतय एकटा धार्मिक स्थल "दादा मैया" अछि. स्थानीय हिन्दू लोकनि में एहि स्थलक बड्ड पैघ मान्यता अछि. पहाड़ी पर एकटा पुरान मजार सेहो अछि. " दादा मैया" स्थलक ओहि लोकनि द्वारा अपवित्र केनाई प्रारंभ क देल गेल. ओतहि मांसाहारी भोजन बनय लागल आ फेर नमाज सेहो पढल जाय लागल. एहि कारने आसपास केर गाम ( नांगल देवत, महिपालपुर, रंगपुरी, मसूदपुर,किशनगढ़, घिटोरिनी, महरौली, कटवारिया सराय , रजोकरी, कापसहेड़ा आदि) केर लोक सभ सेहो भडकि गेलाह. गौआँ सभ कय्यक पंचायत करलाक उपरान्त प्रशासनक कें चेतावनी देलनि जे पहाड़ी सं ओहि मुस्लिम सभ कें हटायल जाय, नहि तं  गौआँ सभ आंदोलन प्रारंभ क देत . एहि सम्बन्ध में गौआँ सभक एकता प्रतिनिधिमंडल दिल्लीक मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सं भेंट कयलनि . चौतरफा दबाबक कारने प्रशासनक माध्यम ओहि मुस्लिम लोकनि कें १५ मई २०१२ कें रंगपहाड़ी  सं हटा देल गेल . ओहि में सं किछु लोकनि उ.प्र. केर मुस्लिम बहुल जिला मुजफ्फरनगर, रामपुर, मेरठ, अलीगढ़ दिस कूच कयलाह. किछु दिल्लीएमे रहि गेलाह. ओ लोकनिक लेल ओखला क्षेत्रक मदनपुर खादरमें किछु मुस्लिम संगठन सभ आशियाना बनेबाक गप कहलनि अछि. 
 
सोचल समझल साजिश :  एतय सवाल उठैत अछि जे बिना कोनों कागजे अवैध माध्यम भारत आयल मुस्लिम सभकें देश सं बाहर पठयबाक बजाय हुनका लोकनि कें भारत केर विभिन्न स्थान पर कियैक रहल देल जाय? एकर जबाब भारत सरकार कखनो नहि द सकल. लुट- पिट क पकिस्तान सं भारत आयल बेचारा हिन्दू सभक लेल सदैव तैयार रहैत अछि. रंग पहाड़ी क आसपास कें निवासी लोकनिक कथन छल जे जाहि मुस्लिम सभक म्यामांरके बताक भारतमे शरणार्थीक दर्जा दिलैबाक कोशिश क जा रहल अछि,ओकर पहचान संदिग्ध अछि. ओहिमें सं एकाध प्रतिशत अवस्से म्यामांरके भ सकैत अछि, मुदा ओहिमे सं अधिकांश बंगलादेशी लगैत अछि. ओहि लोकनि कें बोलचाल आ पहिरावा सं  म्यामांरी कम आ बंगलादेशी  बेसी लगैत अछि. एकर पुष्टि इ सभ गप सं सेहो होयत अछि जे हुनका सभ में एकहुटाक संग एहन कोनों कागद नहि अछि जे साबित क सकय जे ओ लोकनि म्यामांरके छथि. ओ लोकननि के कहनाय इ अछि जे म्यामांर में साढ़े  तीन सय साल पुरान इतिहास अछि, ओकर बाबजूदो ओहि ठामक सरकार हुनका लोकनि कें अप्पन नागरिक नहि मानैत छथि. की एहन भ सकैत अछि? एकर अर्थ इ अछि जे ओ लोकनि म्यामांरके नहि बंगलादेशक रहनिहार छथि. भारतमे  बंगलादेशी वा पाकिस्तानीके म्यामांरक निवासी बताक भारतमे शरणार्थी केर दर्जा प्राप्त करबाक हेतु प्रयासरत छथि. इ सभ किछु एकटा सोचल- समझल साजिश  कें माध्यमे भ रहल अछि . एहि सजिशमे भारत केर अनेक मुस्लिम नेता आ मुल्ला- मौलवी शामिल छथि. एहि सभ बंगलादेशी घुसपैठी सभक कारने आब अनेको मुस्लिम नेता आब इ दावा करय लागल छथि  जे किछुए साल बाद आसाम में कियो मुस्लिमे मुख्यमंत्री होयत. 
   जाहि मुस्लिम कें शरणार्थीक दर्जा दिलयबाक लेल लायल गेल छल, ओकरा बारे में कहल जा रहल अछि जे ओ ४-५ साल सं भारत केर विभिन्न हिस्सा में रहि रहल अछि आ एकर संख्या ८० हजारक समीप अछि .मुजफ्फरपुर , जम्मू आदि शहर सभमे रहनिहार इ मुस्लिम सभकें स्थानीय मुस्लिम सभक पूर्ण समर्थन प्राप्त अछि. चूंकि न्यायालयक आदेश पर कखनो-कखनो पुलिस बंगलादेशी घुसपैठी सभ कें पकड़ेत छथि. शायद एहि  लेल आब जे बंगलादेशी मुस्लिम नुकाक भारत आयब रहल छथि, ओ पुलिस सं बचैबाक लेल शरणार्थीक दर्जा प्राप्त करय चाहैत छथि. 

मदद करनिहार  कें जाँच होवय : यू.एन.एच.सी.आर.कार्यालयक अनुसार इ मुस्लिम सभ सभ्सें पहिने २००९ मे शरणार्थीक दर्जा प्राप्त करय लेल आवेदन कयने छलाह . मार्च २०१२ धरी एहन दू हजार मुस्लिम सभ शरणार्थी कार्ड प्राप्त करबाक लेल आवेदन कयने छल . इ मुस्लिम सभ कें सलाह्कारक सोंच चल जे एक्के संग हजारों लोकनी आवेदन ल क यू.एन.एच.सी.आर.कार्यालय पहुंचत त सरकार पर दबाब बनत आ एहि मुस्लिम सभ कें एकहि झटकामे शरणार्थीक दर्जा भेट जायत , मुदा एहि साजिश में ओ सफल नहि  भ सकलाह. स्थानीय लोकनिक विरोधक कारने प्रशासन ओ मुस्लिम लोकनि के दिल्ली सं बाहर करय पडल. एहि विरोध कें देखैत भेल यू.एन.एच.सी.आर. सेहो एतेक लोकनिकें एकहि संग शरणार्थीक  दर्जा देवय लेल मना क देलक.
                                     विश्व हिन्दू परिषद केर अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष डा. प्रवीण भाई तोगाडिया  सेहो प्रधानमंत्री केपात्र लिख क मांग कयलनि जे इ मुस्लिम सभ के कोनों स्थितिमे शरणार्थीक दर्जा नहि देल जाय , कियक त हिनका सभक सम्बन्ध जिहादी गुट सभ सं अछि. डा. तोगाडिया इहो मांग कयलनि जे इ मुस्लिम सभ कें स्थानीय मददगार कें सेहो दण्डित कयल जाय आ जे संगठन एकर मदद क रहल अछि ओकरा पर प्रतिबन्ध लगय. एहि सम्बन्धमे भाजपाक राज्यसभाक सांसद बलवीर पुंज एकटा नीक प्रश्न उठौलनि जे एहि मुस्लिम सभ कें यू.एन.एच.सी.आर.कार्यालय धरि कोन - कोन लोक सभ आनलक, एकर जांच होयबाक चाही . निवर्तमान गृहमंत्री पी. चिदम्बरम एहि प्रकरणक जांच केर आश्वासन त देलनि मुदा चिदम्बरमक मोन देखैत जाँच केर उमेद कम्मे अछि. 
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(साप्ताहिक पांचजन्य झंडेवालान, दिल्ली सं प्रकाशित  दिनांक २७ मई २०१२ केर अंक में मूल लेखक 
अरुण कुमार सिंहक हिन्दी लेख केर मैथिली अनुवादक छथि सूचना अधिकार कार्यकर्ता गोपाल प्रसाद.)

सोमवार, 3 मई 2010

मनुखक पहचान

की इ नहि अछि अज्ञान? जे कएक बेर लोक करैत अछि
मनुखक, किछु एहि तरहे पहचान ---
की जखन एकरा दिअड आश्रय, तऽ खुशामद बुझैत अछि
जखन एकर करू उप्कार, तऽ खुशामद बुझैत अछि
जखन एकरा दिअड उपदेश, तऽ मुँह फेरैत अछि
जखन एकर करू आदर, तऽ अस्वीकार करैत अछि
जखन एहि पर करू विश्‍वास, तऽ अस्वीकार करैत अछि
जखन एहि पर करू विश्‍वास, तऽ विश्‍वासघात करैत अछि
जतय देखैत स्वसुख, ओकरे लेल संग्राम करैत अछि
जखन दुखक काल अछि अबैत, तऽ बहाना ढुँढ़ैत अछि
जखन एकरासड करू प्यार तऽ आघात करैत अछि
जखने होबय स्वार्थपूर्त्ति, तऽ छोड़ि चलि जायत अछि
मोनमे राखल अरमान के तोड़ि चलि जायत अछि
मुदा बंधु, इ कियक नहि बुझैत छी जे ईएह मनुख
जीवैत अछि, किछु एहि तरहे पहचान
जे इ मनुत्व, जे अछि मनु केर संतान
मानवता-कल्याणक लेल जाहिमे अछि अटल अभियान
कएक वर्ष सँ भेटल धरोहर, जाहि पर अछि बड्‌ड गुमान
कोना अहिना हेरा सकैत अछि निज तनमे रहैत प्राण
मनुख, मनुखक, जे करय सतत सम्मान
तऽ बढि जाय ओकर, मानवताक पहचान
जदि नीक होवय उदेश्य, लक्ष्य प्राप्ति होवय अरमान
तऽ सतत्‌ परिश्रमसँ, होवय कठिन काज आसान
ईश्‍वर होथु सहाय, मंगलमय होवय जन-गण-मन
अपन सत्कर्मसँ, नित्य निखारू जन-जीवन ।

शनिवार, 2 जनवरी 2010

फराक मिथिला राज्यक गठन कियक नहि ?



जखन पृथक तेलंगाना राज्यक गठन भ सकैत अछि त फराक मिथिला राज्यक गठन कियक नहि? मिथिलांचल के पूर्ण न्याय एखन धरि कोनो उद्योग एही क्षेत्र में प्रारंभ नहि कायल गेल अछि | सभ क्षेत्र में मिथिलांचल केर घोर उपेक्षा भ रहल अछि | केंद्र सरकार ओ बिहार सरकार एखन धरि कोनो उद्योग एही क्षेत्र में प्रारंभ नहि कायल गेल अछि, जाहिसँ एही क्षेत्रक लोक पलायन लेल मजबूर अछि | असमान विकासक करने दशक पिछरल राज्य बिहार में मिथिला अति पिछरा क्षेत्र बनि क रही गेल अछि | बिहार सरकार केर ध्यान मात्र पटना आ नालंदा के विकसित केनाई रहि गेल अछि | मिथिला मे पर्यटन ओ खाद्य प्रसंस्करण केर भरपूर संभावना केर बाबजूदो मिथिलाक संग नकारात्मक रवैया अपनओल जा रहल अछि| एही क्षेत्रक भाषा मैथिली आ मैथिली अकादेमी अपन अस्तित्व हेतु संघर्ष क रहल अछि | बिहार सरकार केर युवा महोत्सव आ दिल्ली केर प्रगति मैदान स्थित बिहार पवेलियन मे आईआईटीएफ केर दौरान आहूत सांस्कृतिक कार्यक्रम मे मैथिली केर घोर उपेक्षा कयल गेल | जाहिसँ सरकार केर नीति ओ नीयत मिथिलावासी लोकनि कें समझ मे आबी गेल अछि | एहि सभ समस्याक निदान केर एकमात्र विकल्प फराक मिथिला राज्य अछि | बिहार सरकार प्रवासी बिहारी लोकनि केर सुरक्षा , रोजगार आ न्याय दिलयबमे पूर्ण तरहे विफल रहल अछि आ एकर आ एकर ज्यादातर शिकार मिथिलाक लोक सभ रहल अछि | महाराष्ट्र , दिल्ली आ पंजाब केर बाद मध्यप्रदेशक राजनेता लोकनि सेहो बिहारी लोकनिक संग असंवैधानिक रूख अप्नौलानी आ बिहार सरकार मात्र बयां डी क अपन कर्त्तव्य केर इतिश्री क लेलनी | बिहार सरकार केर योजना विभाग , केद्र सरकार केर योजना विभाग मे बिहार टास्क फ़ोर्स आ बिहार फौन्डेसन केर बाबजूद मिथिला क बिहार मे पर्याप्त तवज्जो कियक नहि भेटल? आधारभूत संरचनाक विस्तारक बिना मिथिला कटल कटल जका अछि | पूर्व लोक सभा अध्यक्ष पी . ए .संगमा केर ओ बयान स्वागत योग्य अछि जाहिमे ओ कहने छलाह जे " क्षेत्रवाद - नक्सलवाद असमानता केर उपज अछि जाहिसँ छोट राज्य केर गठन क दूर कयल जा सकैत अछि " मिथिलाक लोकनि बाढ़ झेलय आ विकासक धारा अन्य क्षेत्र मे बहे ई नहि चालत आई भारत केर समस्त मिथिला वासी लोकनि के एकरा लेल आन्दोलन करय परत फराक मिथिला राज्य लेल अंतर राष्ट्रीय मथिली परिषद् द्वारा कानपूर मे २३ - २४ दिसंबर के मिथिलाक बुद्धिजीवी, स्वैक्षिक संगठन केर सम्मलेन भेल जाही मे आंदोलनक दशा दिशा तय कयल गेल|एहि वास्ते दिल्ली केर जंतर मंतर पर सेहो धरना देल गेल जाकर पूर्ण समर्थन भेटल|
-गोपाल प्रसाद
gopal.eshakti@gmail.com
mob: 9289723145

प्रबोध सम्मान २०१० जीवकान्तकेँ भेटलन्हि

एहि बेरुका पुरस्कार चयन प्रक्रियामे २१ गोटेक शुरुआती दौड़मे छलाह। पहिल बेरमे ७ गोटे बहार भेलाह (लेबल १), दोसर बेर आठ गोटे बहार भेलाह (लेबल २), तेसर दौड़मे मात्र छह गोटे बचलाह (लेबल ३)। ओहि छह गोटेक क्रम एहि प्रकारसँ रहल:-
जीवकान्त: ४८ अंक
सोमदेव: २२ अंक
भीमनाथ झा: १७ अंक
रमानन्द रेणु: १७ अंक
चन्द्रभानु सिंह: १२ अंक
चन्द्रनाथ मिश्र अमर: १२ अंक

जज एहि प्रकारेँ रहथि:
एल-१- १०/१०
एल.२- ९/१०
एल.३- १०/१०

सभ मिला कऽ २९/३० जज जाहिमे २६ गोट जज रिपीट नहि छलाह, माने २६ विभिन्न गोटे जज छलाह।

सभटा वोट एहि तरहेँ रहल:

३०*३=९० आ ३०*२=६० आ ३०*१=३० = १८०

वोट छह टा कम माने १७४ टा देल गेल, जाहिमे छह गोटे जे ऊपरमे रहलथि हुनका एहि मे सँ १३१ टा वोट भेटलन्हि।
जीवकान्तकेँ १७४ मे ४८ वोट भेटलन्हि-२७.५९% ( संगहि १३१ मे सँ ४८ भेल- ३६.६४%)

अंतिम लेबलमे दसमे सँ आठटा जज हुनका पहिल वोट देलन्हि।

जीवकान्तजीकेँ बधाई।

जीवकान्त- (१९३६- )
पूर्ण नाम- जीवकान्त झा
पिता-गुणानन्द झा, माता-महेश्वरी देवी, जन्म तिथि-२५.०७.१९३६ स्थान अभुआढ़, जिला-सुपौल
शिक्षा-मैट्रिक (१९५५ उ.वि.डेवढ़), आइ.एस.सी. (१९५७ आर.के.कॉलेज, मधुबनी), बी.ए. (१९६४ बिहार वि.वि.स्वतंत्र छात्र), डिप.इन.एड.(१९६९ मिथिला वि.वि.)
नौकरी-उच्च विद्यालयमे सहायक शिक्षक। विज्ञान शिक्षक (उ.वि.खजौली १९५७-८१), हिन्दी शिक्षक (उ.वि.डेओढ़ एवं उ.वि.पोखराम १९८१-९८)
पहिल रचना-इजोड़िया आ टिटही (कविता, जनवरी १९६५ मिथिला मिहिर)
पहिल छपल पोथी- दू कुहेसक बाट (उपन्यास १९६८)
नवीनतम पोथी-खिखिरक बीअरि (२००७ बाल पद्य कथा), अठन्नी खसलइ वनमे (पद्य-कथा संग्रह) आ पंजरि प्रेम प्रकासिया (जीवन-वृत्तक अंश) प्रेसमे
पुरस्कार-साहित्य अकादेमी (दिल्ली १९९८), किरण सम्मान (१९९८), वैदेही सम्मान (१९८५)
प्रकाशित पोथी-
कविता संग्रह:
नाचू हे पृथ्वी (७१), धार नहि होइछ मुक्त (९१), तकैत अछि चिड़ै (९५), खाँड़ो (१९९६), पानिमे जोगने अछि बस्ती (९८), फुनगी नीलाकाशमे (२०००), गाछ झूल-झूल (२००४), छाह सोहाओन (२००६), खिखिरिक बीअरि (२००७)
कथा-संग्रह:
एकसरि ठाढ़ि कदम तर रे (७२), सूर्य गलि रहल अछि (७५), वस्तु (८३), करमी झील (९८)
उपन्यास:
दू कुहेसक बाट(६८), पनिपत(७७), नहि, कतहु नहि (७६), पीयर गुलाब छल (७१), अगिनबान (८१)
हिन्दी अनुवाद- निशान्त की चिड़िया (हिन्दी अनुवाद-तकैत अछि चिड़ै, साहित्य अकादमी, दिल्ली २००३)



प्रबोध सम्मान

प्रबोध सम्मान 2004- श्रीमति लिली रे (1933- )
प्रबोध सम्मान 2005- श्री महेन्द्र मलंगिया (1946- )
प्रबोध सम्मान 2006- श्री गोविन्द झा (1923- )
प्रबोध सम्मान 2007- श्री मायानन्द मिश्र (1934- )
प्रबोध सम्मान 2008- श्री मोहन भारद्वाज (1943- )
प्रबोध सम्मान 2009- श्री राजमोहन झा (1934- )
प्रबोध सम्मान 2010- श्री जीवकान्त (1934- )


साहित्य अकादेमी पुरस्कार- मैथिली

१९६६- यशोधर झा (मिथिला वैभव, दर्शन)
१९६८- यात्री (पत्रहीन नग्न गाछ, पद्य)
१९६९- उपेन्द्रनाथ झा “व्यास” (दू पत्र, उपन्यास)
१९७०- काशीकान्त मिश्र “मधुप” (राधा विरह, महाकाव्य)
१९७१- सुरेन्द्र झा “सुमन” (पयस्विनी, पद्य)
१९७३- ब्रजकिशोर वर्मा “मणिपद्म” (नैका बनिजारा, उपन्यास)
१९७५- गिरीन्द्र मोहन मिश्र (किछु देखल किछु सुनल, संस्मरण)
१९७६- वैद्यनाथ मल्लिक “विधु” (सीतायन, महाकाव्य)
१९७७- राजेश्वर झा (अवहट्ठ: उद्भव ओ विकास, समालोचना)
१९७८- उपेन्द्र ठाकुर “मोहन” (बाजि उठल मुरली, पद्य)
१९७९- तन्त्रनाथ झा (कृष्ण चरित, महाकाव्य)
१९८०- सुधांशु शेखर चौधरी (ई बतहा संसार, उपन्यास)
१९८१- मार्कण्डेय प्रवासी (अगस्त्यायिनी, महाकाव्य)
१९८२- लिली रे (मरीचिका, उपन्यास)
१९८३- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (मैथिली पत्रकारिताक इतिहास)
१९८४- आरसी प्रसाद सिंह (सूर्यमुखी, पद्य)
१९८५- हरिमोहन झा (जीवन यात्रा, आत्मकथा)
१९८६- सुभद्र झा (नातिक पत्रक उत्तर, निबन्ध)
१९८७- उमानाथ झा (अतीत, कथा)
१९८८- मायानन्द मिश्र (मंत्रपुत्र, उपन्यास)
१९८९- काञ्चीनाथ झा “किरण” (पराशर, महाकाव्य)
१९९०- प्रभास कुमार चौधरी (प्रभासक कथा, कथा)
१९९१- रामदेव झा (पसिझैत पाथर, एकांकी)
१९९२- भीमनाथ झा (विविधा, निबन्ध)
१९९३- गोविन्द झा (सामाक पौती, कथा)
१९९४- गंगेश गुंजन (उचितवक्ता, कथा)
१९९५- जयमन्त मिश्र (कविता कुसुमांजलि, पद्य)
१९९६- राजमोहन झा (आइ काल्हि परसू)
१९९७- कीर्ति नारायण मिश्र (ध्वस्त होइत शान्तिस्तूप, पद्य)
१९९८- जीवकान्त (तकै अछि चिड़ै, पद्य)
१९९९- साकेतानन्द (गणनायक, कथा)
२०००- रमानन्द रेणु (कतेक रास बात, पद्य)
२००१- बबुआजी झा “अज्ञात” (प्रतिज्ञा पाण्डव, महाकाव्य)
२००२- सोमदेव (सहस्रमुखी चौक पर, पद्य)
२००३- नीरजा रेणु (ऋतम्भरा, कथा)
२००४- चन्द्रभानु सिंह (शकुन्तला, महाकाव्य)
२००५- विवेकानन्द ठाकुर (चानन घन गछिया, पद्य)
२००६- विभूति आनन्द (काठ, कथा)
२००७- प्रदीप बिहारी (सरोकार, कथा
२००८- मत्रेश्वर झा (कतेक डारि पर, आत्मकथा)
२००९- स्व.मनमोहन झा (गंगापुत्र, कथासंग्रह)

साहित्य अकादेमी मैथिली अनुवाद पुरस्कार

१९९२- शैलेन्द्र मोहन झा (शरतचन्द्र व्यक्ति आ कलाकार-सुबोधचन्द्र सेन, अंग्रेजी)
१९९३- गोविन्द झा (नेपाली साहित्यक इतिहास- कुमार प्रधान, अंग्रेजी)
१९९४- रामदेव झा (सगाइ- राजिन्दर सिंह बेदी, उर्दू)
१९९५- सुरेन्द्र झा “सुमन” (रवीन्द्र नाटकावली- रवीन्द्रनाथ टैगोर, बांग्ला)
१९९६- फजलुर रहमान हासमी (अबुलकलाम आजाद- अब्दुलकवी देसनवी, उर्दू)
१९९७- नवीन चौधरी (माटि मंगल- शिवराम कारंत, कन्नड़)
१९९८- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (परशुरामक बीछल बेरायल कथा- राजशेखर बसु, बांग्ला)
१९९९- मुरारी मधुसूदन ठाकुर (आरोग्य निकेतन- ताराशंकर बंदोपाध्याय, बांग्ला)
२०००- डॉ. अमरेश पाठक, (तमस- भीष्म साहनी, हिन्दी)
२००१- सुरेश्वर झा (अन्तरिक्षमे विस्फोट- जयन्त विष्णु नार्लीकर, मराठी)
२००२- डॉ. प्रबोध नारायण सिंह (पतझड़क स्वर- कुर्तुल ऐन हैदर, उर्दू)
२००३- उपेन्द दोषी (कथा कहिनी- मनोज दास, उड़िया)
२००४- डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिंह “मौन” (प्रेमचन्द की कहानी-प्रेमचन्द, हिन्दी)
२००५- डॉ. योगानन्द झा (बिहारक लोककथा- पी.सी.राय चौधरी, अंग्रेजी)
२००६- राजनन्द झा (कालबेला- समरेश मजुमदार, बांग्ला)
२००७- अनन्त बिहारी लाल दास “इन्दु” (युद्ध आ योद्धा-अगम सिंह गिरि, नेपाली)
२००८- ताराकान्त झा (संरचनावाद उत्तर-संरचनावाद एवं प्राच्य काव्यशास्त्र-गोपीचन्द नारंग, उर्दू)




यात्री-चेतना पुरस्कार


२००० ई.- पं.सुरेन्द्र झा “सुमन”, दरभंगा;
२००१ ई. - श्री सोमदेव, दरभंगा;
२००२ ई.- श्री महेन्द्र मलंगिया, मलंगिया;
२००३ ई.- श्री हंसराज, दरभंगा;
२००४ ई.- डॉ. श्रीमती शेफालिका वर्मा, पटना;
२००५ ई.-श्री उदय चन्द्र झा “विनोद”, रहिका, मधुबनी;
२००६ ई.-श्री गोपालजी झा गोपेश, मेंहथ, मधुबनी;
२००७ ई.-श्री आनन्द मोहन झा, भारद्वाज, नवानी, मधुबनी;
२००८ ई.-श्री मंत्रेश्वर झा, लालगंज,मधुबनी
२००९ ई.-श्री प्रेमशंकर सिंह, जोगियारा, दरभंगा


कीर्तिनारायण मिश्र साहित्य सम्मान


२००८ ई. - श्री हरेकृष्ण झाकेँ कविता संग्रह “एना त नहि जे”
२००९ ई.-श्री उदय नारायण सिंह “नचिकेता”केँ नाटक नो एण्ट्री: मा प्रविश

शनिवार, 28 नवंबर 2009

मिथिला कवि कोकिल विद्यापति


मिथिलाक भूमि अत्यंत प्राचीन कालसँ बौद्धिक क्रियाकलाप आ विवेचन (तर्क-वितर्क) लेल विख्यात अछि । एहि ठामक मैथिली भाषा बड्‌ड ललितगर अछि सम्प्रति सभ भाषामे अनेकानेक विधाक अन्तर्गत प्रचुर विकास भ’ रहल अछि । मैछिली एहि दौड़ में पछुआएल नहि अछि । पद्यक क्षेत्र मे महाकवि विद्यापति अमर छथि एहि आलेख मेम साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित विद्यापतिक जीवनी केँ संक्षिप्त अंश पाठक लोकनिक लेल प्रस्तुत अछि- “विद्यापति भारतीय साहित्यक एकटा अत्यंत उत्कृष्ट निर्माता छलाह । जाहि कालमे संस्कृत समस्त आर्यावर्त्तक सांस्कृतिक भाषा छलि, ओ अपन क्षेत्रीय बोली केँ मधुर आ मनोरम काव्यक माध्यम बनौलनि आ साहित्यक भाषा जेकाँ ओहिमे अभिव्यक्‍तिक क्षमता जगा देलनि । ओ एकटा नव ढ़ंगक काव्य-परंपराक आरंभ कयलनि जे उनका लेल अनुकरणीय भेल आ आर्यावर्त्तक एहि भागक एहन कोनो साहित्य नहि अछि जे हुनक प्रतिभा आ रचना कौशलक गंभीर प्रभाव क्षेत्रमे नाहि अबैत हो । ओ उचिते मैथिल कोकिल अथवा मिथिलाक कोयल कहल गेलाह अछि कारण जे हुनक कल-कूजन सँ आधुनिक पूर्वोत्तर भारतीय भाषा सभक काव्यमे वसंतक आगमन भेल ।
विद्यापति, जिनक आनुवंशिक उपनाम ‘ठाकुर’ सँ घोतित होइत अछि जे ओ अचल सम्पत्तिक स्वामी रहथि, शुक्ल यजुर्वेदक माध्यन्दिन शाखाक काश्यप गोत्रीय मैथिल ब्राह्यण परिवार में जन्म लेने रहथि । दरभंगा सँ लगभग १६ मील उत्तर-पश्‍चिममे अखनो स्थित समृद्ध गाम विसफी मे एहि परिवारक जड़ि रहैक आ विद्यापतिक जन्मक समयमे ई परिवार ओही गाममे रहैत छल जाही लेल ई परिवार आ वंश विसईवार विसफीक नामसँ जानल जाइत अछि । ई एहन विद्वान राजपुरूष लोकनिक परिवार छल जे मिथिलामे अपन धर्मशास्त्रीय ज्ञानक लेल प्रसिद्ध छलाह आ कर्णाट वंशीय राजा लोकनिक दरबारमे विश्‍वासयोग्य ओ उत्तरदायित्व पद पर आसीन रहथि । विद्यापति एकटा दुर्लभ प्रतिभा रहथि जे शाश्‍वत प्रेमक गायकक रूपमे अमर छथि, मुदा संगाहि मनुक्ख आ राजपुरूषक रूपमे अपन व्यक्‍तित्वक सम्पूर्णताक कारणो ओ कम स्मरण नहि कयल जाइत छथि । जहिया विद्यापतिक जन्म भेलनि ताहि समयमे मिथिलामे एकटा पैघ सामाजिक आ बौद्धिक पुनुरूत्थानक नायक लोकनिक अही तरहक परिवार रहनि, जकर ओ एकटा समर्थ अंकुर रहथि ।
विद्यापतिक जन्म विसफी नामक गाममे भेल रहानि जे कि हुनक परिवारक वंशधर लोकनिक स्मरणक अनुसार हुनका लोकनिक पूर्वजक डीह ग्राम छलनि फलतः समाजक नव गठनक कालमे बिसफीकेँ एहि परिवारक मूलग्राम मानि लेल गेल आ एअहि तरहेँ ई सभ विसईवार कहयलाह । विद्यापति जीवन भरि विसफीमे रहलाह आ जखन शिवसिंह गद्‌दी पर बैसलाह तखन राजा शिवसिंह राज्यक प्रति महत्वपूर्ण सेवाक लेले कबि केँ इएह ग्राम (बिसफी) दानमे द‍ देलाखिन । एहि (खैरातक) उपहारक उपयोग करैत विद्यापतिक वंशज बसफिए में ओहि समय धरि रहलाह, जखन कि ३०० बरख पूर्व ओ लोकनि मधुबनीक निकटस्थ गाम सौराठ जाकर बसि गेलाह, जतऽ ओ सभ अखनो विद्यमान छथि । अंग्रेज सभक आगमन धरि ई गाम एहि परिवारक कब्जा में रहल ।
मैथिलीक महानतम कवि विद्यापति ठाकुर ई. सन १३५० सँ १४० ई. क बेच भेल रहथि ओ पश्‍चिम बंगालक सीमावर्त्ती बिहार प्रदेशक पूर्वी भूभागमे रहनिहार पचास लाख सँ अधिक लोक द्वारा बाजल जाइत मैथिली भाषा में रचना कयलनि । विद्यापति अपन ८०० वैष्णव आ शैव पदसभ किंवा गीत सभक लेल विख्यात छथि, जकर उद्धार तड़िपत्रक भिन्‍न-भिन्‍न पांडुलिपि सभसँ कयल गेल ओ संस्कृत, अवहट्‌ट (अपभ्रंश) आ मैथिलीक विद्वान रहथि । हुनक गीत सभ रमणीक चारूता आ शालीनताक ललित अंकन आ लद्यु चित्र-रूपक वर्णनसँ परिपूर्ण अछि । रविन्द्रनाथ ठाकुर कहब छनि जे “विद्यापति आनन्दक कवि रहथि आ प्रेमे हुनका लेल जगतक सारतत्व रहनि ।” ओ अपन गीत सभके संगीतवद्धो कयने रहथि, कारण जे ओ शिवसिंह राज्यकालमे ३६ वर्ष धरि राजकवि रहथि । अपन गूजैत आ प्रभावशाली गीत सभक अतिरिक्‍त ओ ‘पुरूष परीक्षा’, कीर्तिलता, गोरक्ष प्रकाश’, मणिमंजरी नाटिका’, ‘लिखननावली’, ‘दानवाक्‍यावली,’ ‘गंगा वाक्‍यावली’, ‘दुर्गाभक्‍ति तरंगिणी’, ‘विभासागर’, भूपरिक्रमा’, ‘शैवसर्वस्वार’ सन कृतियों केर रचना कयलनि ।
विद्यापति मैथिलीमे जाहि नवीन धारक सूत्रपात कएलन्हि तकरा समाज आदरक दृष्टिएँ अपनौलक । हुनक रचनाक मिथिलाक संग-संग ओकर समीपर्वर्त्ती प्रान्तहुँमे आदर भेलैक । फल इ भेल जे विद्यापतिक कवि लोकनि हुनक रचनाक आधार पर साहित्य भंडारक श्रीवृद्धिमे योगदान देलन्हि । विषयवस्तु प्रायः सएह रहि गेल जे विद्यापतिक समयमे छल मुदा ओकर चित्रण भिन्‍न-भिन्‍न कवि लोकनि भिन्‍न-भिन्‍न दृष्टिएँ कयलन्हि । यद्यपि विद्यापतिक किछु समय बाद किछु दिन धरि हमरा लोकनिकेँ मैथिली साहित्यिक सामग्रीक अभाव भेटैत अछि । ओहि समयक लिखल ग्रन्थ उपलब्ध नहि अछि किन्तु साहित्यक स्त्रोत एकदम सुखा नहि गेलैक । साहित्यक धारा कोहुना चलैत रहलैक । तकर प्रमाण हमरा लोकनिकेँ नेपाल एवं आसाममे उपलब्ध नाटक सभसँ होइत अछि । विद्यापतिक पश्‍चात्‌ नेपालमे अनेक नाटकक रचना भेल जकर लेखक लोकनिमे किछु मैथिल कवि तथा नेपालक राजा लोकनि छलाह । ओहि नाटक सभक भाषा पूर्णतः मैथिली छैक, हँ कतहु-कतहु ओहिमे नेपालमे प्रचलित नेवारी भाषाक प्रयोग भेटैत अछि । विद्यापतिक अनुकरण पर हुनकहि शैली पर हुनकहि भाषामे गीतक रचना होमय लागल तथ अई अनुकरण ततेक व्यापक भेल जे विश्‍वकवि पर्यन्त एहि अनुकरणमे रचना कयलन्हि मुदा अनुकरण तँ अनुकरण थिक । भाषान्तर भाषी जखन विद्यापतिक भाषाक अनुकरण प्रारंभ कयलन्हि तँ ने ओ विद्यापतिक भाषा रहि गेल आने अनुकरणकर्त्ता लोकनिक भाषा । दुनू मीलि एकटा कृत्रिम भाषाक जन्म देलनि ।
ओहि परम्पराक अनुयायी छथि जाहि मे कविता केँ मानव-जीवनक सार्वजनीय तत्वक अभिव्यक्‍ति मानल गेल अछि । प्रकारान्तर सँ कहि सकैत छी जे ई मानवीय जीवनक आदर्श रूप थिक । मनुष्यक चरित्र, भावना आ कार्यक इन्द्रियगम्य आदर्शबिम्ब थिक, आ ई सब ‘मिथ्या’ थिक । श्रृंगार रसक गीत हो वा करूण ओ शांतरसक, विद्यापति वस्तुनिष्ठ छथि आ कखनो अपन व्यक्‍तिगत अनुभवक आधार नहि लैत छथि । परकीयाक प्रेमक गीतक संग हम नचारीक कोन तरहेँ सामंजस्य कऽ सकैत छी? विद्यापतिक गीत मे एहि तथ्य केँ स्पष्ट करयवला एहेन किछू नहि अछि जे हुनक बीएतल जीवन केँ रेखांकित करैत हो, मुदा हुनक प्रेमगीत कँ हम सभ एहि रूप मे नहि लैत छी । शांत रसक दृष्टिकोण सँ ई मानव-जीवनक सामान्य चित्र थिक । विद्यापतिक गीत विशिष्ट मनोदशाक सृष्टि थिक । कविक रूप मे ओ अपन रूचिक कोनो विषय पर अनुभूतिक तीव्रताक संग लिखि सकैत छलाह । ओ हार्दिकताक अतल तल मे डुबि कऽ लिखैत छलाह । हुनक हदय जाहि रस मे डूबल रहैत छल तेहने गीत ओहि सँ अनुस्यूत होइत छल । हुनक गीत मे व्यक्‍त भावना संसारक औसत आदमीक सामान्य अनुभव पर आश्रित अछि । तें ई कहब अतिशयोक्‍ति होयत जे ई कविक जीवनानुभवक परिणाम थिक जे ओ वृद्धवस्था मे पछता रहल छथि । विद्यापतिक सदृश प्रतिहावान कवि मनुष्यक एहि सामान्य दुर्बलता केँ देखि-बुझि सकैत छल जाहि सँ एकर व्यापक प्रभाव पड़ैक । पश्‍चात्तापक भावना, ग्लानि, जीवनक निःसारता - ई सब शांत रस में अंतर्निहित रूप सँ विद्यापति अपन काव्य मे कयने छलाह, आ हुनक जीवनक ज्ञात तथ्यक आधार पह हम ई विश्‍वास नहि करैत छी जे ई गीत सब विद्यापतिक जीवनगत वा आत्मनिष्ठ अनुभवक देन छल । अपन श्रृंगार-गीत मे ओ तटस्थ वा वस्तुनिष्ठ छलाह । एहि गीत सब में शांत रसक ओतबे परिपाक भेल अछि जतेक प्रेम-गीत मे श्रृंगार रसक । विद्यापति मानव जीवनक निःसारता आ क्षुद्रताक समान रूप सँ दर्शन आ गहन अनुभव कयने छलाह । एहि गीत सब मे अपना प्रति एक प्रकारक उपेक्षाभावक जे दर्शन होइत अछि से ओहिना कविक वैयक्‍तिक नहि अछि जेना नायिकाक लेल नायकक प्रेमावेग । विशिष्टक माध्यम सँ सामान्यक चित्रण काव्यक उच्चतम लक्ष्य रहल अछि आ विद्यापति ओकरा विदग्धतापूर्वह प्राप्त कऽ सकलाह ओ यौन-प्रेम हो वा आध्याय्म प्रेम, जीवनक आनन्दक हो वा निःसारता, चंचलता, क्षुद्रता आ निराशा सँ उत्पन्‍न वैराग्य ।
संस्कृ काव्यक समग्र सौन्दर्य सँ सम्पृक्‍त मधुर आ लयबद्ध गीतक रचयिताक रूप मे विद्यापतिक कीर्ति आश्‍चर्यजनक रूप सँ यत्र-तत्र पसरि गेल । जे केओ एहि गीत केँ सुनलक ओ एकर लयतान सँ मोहित भ‍ गेल । एहि मे व्यक्‍त भावना एतेक सर्वसाधारण छल जे ओ सौन्दर्यानुभूतिजनित आनन्द सँ अपरिचित सामान्य स्त्री-पुरूष केँ सेहो ओकर अनुभूति प्रदान कऽसकल । एहेन समय मे जखन संस्कृते सुसंस्कृत लोकक भाषा छल आ मिथिला सन क्षेत्र जतऽ संस्कृतक अतिरिक्‍त अतिरिक्‍त अन्य कोनो भाषा मे लिखब पवित्रताहरणक सदृश छल, विद्यापतिक ओहि प्रदेशक लोक द्वारा बाजल जायवला भाषा मे लिखबाक साहस आ आत्मविश्‍वास देखौलनि । ओहि समयक पुराणपंथी पंडित द्वारा लोक-भाषा में लिखबाक कारणें विद्यापतिक तिरस्कार कयल गेल, किन्तु जखन ओ देखलनि जे ओएह काव्य विद्यापति केँ अद्वितीय लोकप्रियता आ अभूतपूर्व कीर्ति प्रदान कयलक अछि तखन उदात्त मस्तिष्कक अन्तिम दुर्बलता’ हुनका विद्यापतिक पदचिन्हक अनुसरण करबाक लेल प्रेरित कयलक । विद्यापतिक नमूना पर गीतक रचना करब मिथिलाक प्रतिभाशाली पंडितक लेल सेहो एकटा ‘फैशन’ बनि गेल । ई सत्य जे ओ विद्यापतिक अनुकृति सँ बहुत आगू नहि बढि सकलाह, मुदा ई प्रक्रिया अखंडित रूप सँ आगू बढ़ैत रहल आ विद्यापति द्वारा स्थापित परंपरा आ बाट पर मैथिली साहित्य विकसित भेल ।
मिथिलाक बाहर मैथिली साहित्य नेपाल मे लगभग तीन शताब्दी धरि विद्यापति सँ प्रभावित होइत आगू बड़ैत रहल । मिथिलाक कर्णाट राजा सँ अपन वंशक उत्पत्ति मानयवला भातगाँव आ काठमांडुक मल्ल राजा मैथिली साहित्य कें संरक्षण प्रदान कयलनि । ओइनबारक पतनक उपरांत मिथिलाक राजनीतिक अवस्था मैथिलीक विद्वान आ कवि केँ पड़ोसी नेपालक मल्ल राजा सँ संरक्षण मड.बाक हेतु बाध्य कयलक । विद्यापतिक अनुकरण करैत ओ सभ एकटा विशाल साहित्यक निर्माण कयलनि, जाहि मे सब सँ महत्वपूर्ण शुद्ध मैथिली मे लिखल गेल अनेको नाटक अछि । ओ नाटक सभ ओतय नियमित रूप सँ खेलायल जाइत छल । ओ कोनो आधुनिक भारतीय भाषाअ में लिखल गेल प्राचीनतम नाटक थिक अठारहम शताब्दीक मध्य धरि, जखन कि मल्ल शासक केँ हँटाओल गेल छल, मैथिली नेपाल दरबारक साहित्यिक भाषा बनल रहल आ विद्यापति प्रेरणाक एकटा स्रोत । एहि मे सँ अधिकांश साहित्य मे नहि आयल अछि से खेदजनक विषय अछि । आ तेँ ओकरा बारे मे बहुत कम जानकारी अछि, यद्यपि ओ ओतुक्‍का ग्रंथालय सब मे सुरक्षित अछि ।
मुदा विद्यापतिक सब सँ सशक्‍त प्रभाव बंगालक महान कवि सब केँ प्रेरित कयलक आ बंगला साहित्य केँ ओकर प्रारंभिक अवस्था मे संबर्धन कयलक । बंगाल मे विद्यापतिक कथा वस्तुतः बहुत रमनगर अछि । बहुत समय सँ बंगाल आ मिथिला मे सांस्कृतिक संबंध छल आ ताहि समय मे बंगालक पंडित अपन ज्ञान परिष्कृत करबाक हेतु तथा मिथिलाक महान शिक्षक सब सँ ओकरा आधुनिकतम बनयबाक हेतु मिथिला में अबैत छलाह । तखन जखन ओ फेर अपन घर घुरैत छलाह तखन हुनक ठेर पर विद्यापतिक मोहक गीत रहैत छल । चैतन्यदेव आ हुनक संगीत हेतु ई गीत विचित्र रूप सँ प्रभावशाली सिद्ध भेल किएक तऽ सहजिया संप्रदाय सँ प्रभावित भऽ कऽ ओ यौनाचारक माध्यम सँ दिव्य प्रेमक अनुभव करैत छलाह । विद्यापतिक प्रेम-गीत चैतन्य-संप्रदायक भक्‍ति-गीत बनि गेल आ विद्यापति भऽ गेलाह वैष्णव महाजन । बंगाली वैष्णव मतक एकटा महान प्रवर्त्तक । कीर्त्तन एहि नव संप्रदायक एकटा प्रमुख अंग छल आ विद्यापति सँ पूर्णतः प्रभावित भऽ कऽ अनेक प्रतिभाशाली कवि गीत रचय लगलाह । विद्यापतिक अनुसरण करैत काल ओ विद्यापतिक भाषाक अनुसरण सेहो कैरत छलाह । जेँ कि ओ शुद्ध मैथिली नहि लिखि सकैत छलाह तें हुनक भाषा मैथिली आ बंगलाक एकटा अद्‌भुत मिश्रण छल जे बाद मे ब्रहबोली कहाबय लागल । चैतन्यदेवक हेतु विद्यापति-एकटा आदर्श बनि गेलाह आ ब्रजबोली काव्य-रचनाक भाषा बनि गेल । जेना-जेना चैतन्यदेवक नवीन संप्रदाय व्यापक होइत गेल तहिना-तहिना विद्यापतिक गीत सेहो ओही संग पसरैत गेल आ उड़ीसा ओ असम तक तथा सुदूर ब्रजभूमि तक विद्यापतिक दिव्य-प्रेमक एकटा महान प्रवर्त्तक मानल जाय लगलाह । गीत भक्‍तिगीतक प्रतिरूप बनि गेल । बंगाल मे सेहो विद्यापति एहि संप्रदायक एकटा नेताक रूप मे सम्मानित होइत रहलाह आ लोक हुनका बंगाल मे जनमल बंगाली बुझैत रहल । सम्मान प्राप्त करबाक दृष्टि सँ कवि अपन गीतक अंत मे विद्यापतिक भनिता लगबैत रहलाह । कम-सँ-कम एकटा कवि ऐहन छलाह जे अपन सबटा कविता विद्यापतिएक नाम सँ रचलनि । ब्रजबोली मे विशाल साहित्य उपलब्ध अछि जे भारतीय साहित्यक गौरव थिक । जखन हम मोन पाड़ैत छी जे ब्रजबोली मिथिलाक एकटा भाषा छि, जे ओतय जनमल लोक सभक द्वारा प्रयोग मे आनल गेल छल आ तकर प्रेरणा विद्यापतिक प्रेमगीत देने छल, तखन हम एहि अद्वितीय घटना पर आश्‍चर्य व्यक्‍त करैत छी आ विद्यापतिक प्रतिभा सँ मुग्ध भऽ जाइत छी ।
एहि संबंध मे ई उल्लेखनीय अछि जे रवीन्द्रनाथ केँ सेहो हुनक काव्यजीवनक देहरि पर विद्यापति प्रभावित कयने छलाह । ओ ‘भानुसिंहेर’ पदावली लिखलनि जकरा ओ स्वयं मैथिलीक अनुकृति कहैत छथि । एहि तरहें विद्यापतिक युग मिथिला जेकाँ बंगाल मे सेहो १९म शताब्दीक अंत धरि रहल ।
असमक स्वनामधन्य शंकरदेव आ हुनक शिष्य माधव्देव विद्यापतिक प्रत्यक्ष प्रभाव मे आबि कऽ मैथिली मे लिखलनि । यद्यपि हुनक रचना मनोरंजन नाटकक माध्यम सँ वैष्णवमतक प्रचार करबाक हेतु लिखल गेल छल ; तथापि हुनका प्रेरणा विद्यापति सँ भेटल छलनि, जे लोकक हेतु लिखल गेल रचना मे लोकक द्वारा बाजल जायबला भाषाक प्रयोग कयने छलाह ।
लोकक द्वारा बाजय्जायबला भाषा मे काव्यानंद केँ व्यक्‍त आ संचारित करबाक प्रतिभा एतेक लोकप्रिय भेल, काव्याभिव्यक्‍तिक रूप मे मोहक गीतक उपयोग करबाक रचना-चातुर्य एतेक आकर्षक सिद्ध भेल जे विद्यापति द्वारा स्थापित परंपराक अनुगमन अधिकांश महान कवि कालांतर मे कयलनि । अन्य कविक तऽ कथे कोन, सूरदास, मीरा, तुलसीदास, कबीर सेहो विद्यापति सँ प्रभावित भेलाह भने ओ प्रभाव परोक्षेरूप मे किएक ने पड़ल हो ।
विद्यापति मैथिल पुनर्जागरणक दीप्ततम देन छलाह । ओ व्यवसाय सँ कवि नहि छलाह । हुनका कतेक प्रकारक रूचि छलनि । हुनक दृष्टिकोण अत्यंत उदार छल । हुनक विचार समय सँ बहुत आगाँ छल । अत्यंत खेदजनक विषय थिक जे हुनक बाद मिथिलाक सांस्कृतिक अधःपतन होइत गेल । परिणाम भेल जे व्यक्‍तिक रूप मे विद्यापति केँ द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त केँ बिसरि देल गेल आ ओ एकटा पुराण कथा, एकटा उपाख्यान मात्र बनि कऽ रहि गेलाह । मुदा जहिया सँ ओ अपन चारूकातक लोकक लेल मधुर गीत रचलनि, तहिया सँ कविक रूप मे हुनक यश कहियो कम नहि भेलनि । विद्यापति एखनो एकटा कविक रूप मे जीवत छथि आ जीवित रहताह । ओ भारतीय साहित्यक अत्युत्कृष्ट निर्माता रहलाह अछि आ भारतीय साहित्यक इतिहास मे ओहिना अमर रहताह ।
- गोपाल प्रसाद
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शनिवार, 7 नवंबर 2009

हिंदी ,मैथिली , मिथिला , बिहार ओ मैथिल लोकनि सं अपेक्षा


हिंदी केर प्रचार - प्रसार ओ विकासक लेल केंद्रीय हिन्दी निदेशालय निरंतर प्रयासरत अछि| अपन विभिन्न महत्वपूर्ण योजना सभ आ कार्यक्रम सं हिन्दी कें वैश्विक धरातल पर प्रतिष्ठा दिलयबाक दिशामे सार्थक प्रयास क रहल अछि| निदेशालय द्वारा द्विभाषी, त्रिभाषी आ बहुभाषी कोष आ वार्तालाप पुस्तिका सभकें सीडी रूपमे पाठक लोकनि कें उपलब्ध कराओल गेल अछि |
अष्टम अनुसूचीमे शामिल प्रमुख भारतीय भाषा मैथिली सं सम्बंधित कोनो कार्यक्रम , मैथिली भाषी लोकनि कें हिन्दी सं जोड़वाक प्रक्रिया , हिन्दी-मैथिली-अंग्रेजी कोष वा हिन्दी मैथिली वार्तालाप पुस्तिका केर प्रकाशनक हमारा एखन धरि जानकारी नहि अछि| केंद्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा कोनो संविधान प्रदत्त भारतीय भाषाक प्रति सौतेला व्यवहार की न्यायोचित अछि?
हम माय सीताक जन्मभूमि मिथिला क्षेत्रक दरभंगा जिलाक निवासी छी| दिल्ली मे विगत १२ वर्ष सं बेसी काल सं पत्रकारिता ओ साहित्य सृजनक संगहि संग एकटा आईटी कम्पनी ''नर्मदा क्रिएटिव प्रा. लि. द्वारा प्रकाशित ऑनलाइन हिन्दी मासिक पत्रिका "समय दर्पण " केर संपादकक रूपमे कार्यरत छी| पटना सं प्रकाशित मैथिली त्रैमासिक पत्रिका ' मिथिला महान " केर प्रबंध संपादकक रूप में सेहो योगदान देने छलहुँ | ओहि कालक्रम में प्रमुख लेखक/ कवि लोकनिक रचनाक संग -संग भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् सं प्रकाशित पत्रिका " गगनांचल" केर छ्टा आलेखक मैथिली अनुवाद सेहो कयलहुं |
" मिशन मिथिला " केर संयोजक केर रूप मे मिथिलाक सांस्कृतिक विरासतक संरक्षण -संवर्धन ओ मैथिली अस्मिताक भान करेनाई ओ जागरूकताक अभियान में प्रयासरत छी| किछु काल पूर्व मिशन मिथिलाक दिस सं केंद्रीय हिन्दी निदेशालय (दिल्ली ) , भारतीय भाषा संस्थान ( मैसूर), साहित्य अकादेमी आ मैथिली -भोजपुरी अकादेमी कें कएकटा मांग पत्र पठाओल गेल | मीडिया में सेहो काले काल मैथिली ओ मिथिलाक विकासक लेल प्रखर स्वर अनुगूंजित कयल गेल |
बिहार सरकार मैथिली क विकासमे बाधा उत्पन्न क रहल अछि | इंटरमीडीएटमे पहिने अनिवार्य भाषा क रूप मे मैथिली कें स्थान नहि भेटल मुदा बाद मे ऐच्छिक बिषय केर रूप मे शामिलकय एकर महत्त्व के समाप्त करबाक कुचक्र रचल गेल, जाहि सं अधिकांश छात्र मैथिली क पढाई सं बिमुख भ गेल| ग्याराहमक लेल सरकार द्वारा निर्धारित पोथीक जे नाम देल गेल ओकर प्रकाशन परीक्षा होयबाक मात्र तीन दिन पहिने बाजार मे उपलब्ध भेल जाहि सं बेसी कठिनाई भेल आ मैथिली विषय के घोर आघात लागल | बारहवीं क लेल "तिलकोर भाग-२" केर प्रकाशन सेहो बड्ड बाद मे भेल |इ पोथी नहि त छात्र लोकनि देखलक आ नहि त शिक्षक लोकनि देखलनि कियक त पोथी छपले नहि छल | फरवरी मे एकर परीक्षा भेल आ तखन इ पोथी बाजार मे उपलब्ध भेल | सम्पूर्ण बर्ष बीत गेल , फॉर्म भरल जा चुकल छल मुदा पोथी नहि रहबाक कारणे महाविद्यालय मे एकर पढौनी नहि भेल| एकरा संगे दोसरो पोथी जुडल अछि | बी. पी. एस. सी. पाठ्यक्रम सेहो मैथिलीक लेल उपयुक्त नहि अछि , जाहि मादे प्रश्नकर्ता आ छात्र दुनू के असुविधा भ रहल अछि | राजकमल चौधरी क " ललका पाग " छात्र लोकनि मात्र एकटा कथा ललका पाग पढ़य वा सम्पूर्ण पोथी पढ़य , एकर जिक्र कतहु नहि अछि | पोथीक उपलब्धताक कमी पूर्ण करबामे मैथिली अकादेमी ,साहित्य अकादेमी सक्षम नहि अछि |
यू. पी. एस . सी सेहो उटपटंगे अछि | महाकाव्य सम्पूर्ण होयबाक चाही | मात्र दत्तवती क दू टा सर्ग देबाक की तुक अछि ? जखन की एकर पाठ्यक्रम स्नातकोत्तर स्तरक होयबाक चाही , तीन चारिटा महाकाव्यक नाम होयबाक चाही , जाहि सं विद्यार्थी लोकनि कें छूट भेटय| बड्ड रास उच्च स्तरीय रचनाकार लोकनि कें स्थान नहि भेटल अछि , जकर पुर्नावलोकन अत्यावश्यक अछि |
यू.जी.सी., यू.पी.एस.सी. कें चाही जे सभ विश्वविद्यालय सभ सं मैथिली क शिक्षकक सूची उपलब्ध होबय जाहि सं बिषय सं सम्बंधित समस्या सभक त्वरित निदान भ सकय | स्नातक प्रथम सत्र मे कला, विज्ञान, वाणिज्य संकाय मे नीता झा केर कथा "बाय -बाय अंकल " कें स्थान द क देवशंकर नवीनक संपादकत्व मे एन.बी.टी. द्वारा प्रकाशित एक सय पचीस टाकाक दू टा पोथी पचास अंकक पढाई लेल बोझ डालल गेल एकर कियो विकल्प नहि देल गेल| प्रतिष्ठाक स्तर पर स्नातकोत्तर स्तरक पोथी राखल गेल अछि जखन की अन्य लेखक लोकनिक उच्च कोटिक पोथी उपलब्ध छल |
इग्नू, बी.पी.एस.सी., यू.पी.एस.सी., साहित्य अकादेमी , भारतीय भाषा संस्थान आ यू.जी.सी. केर मैथिलीक कमिटीमे एकटा विशेष कॉकस हाबी अछि | नाम गिनल चुनल अछि - भीमनाथ झा ,नीता झा , अमरजी, रामदेव झा , विद्यानाथ झा विदित, वीणा ठाकुर, अमरनाथ, विभूति आनंद, रमण झा | की ब्रह्मण वर्ग के अतिरिक्त मैथिली मे विद्वान् नहि अछि? दिल्ली केर मैथिली - भोजपुरी अकादेमी सेहो काईस्तवाद मे जकरल अछि| की ऐना मे मैथिली केर सर्वांगीण विकास होयत? प्रश्न इ अछि जे एकरामे कालक्रम अनुसार परिवर्तन कियक नहीं होयत अछि ? एहि लेल मैथिली सं जुडल सभ लोकनि कें जागय पडत |सभ सं नीक होयत जे मैथिलीक शिक्षा देनिहार वा जुडल सभ टा सरकारी वा गैरसरकारी संस्था ऑनलाइन भ जाय , कियक त जखन धरि मैथिली ,नव तकनीक इन्टरनेट सं नहीं जुड़त ओकर चुनौती बढ़बे करत | एहि लेल मैथिल संस्था सभ कें पुरान शैलीक स्थान पर नव राह पर चलय पडत|
(लेखक "मिशन मिथिला " केर संयोजक आ ऑनलाइन हिंदी मासिक पत्रिका "समय दर्पण " केर संपादक छथि) gopal.eshakti@gmail.com, Mob: 09211309569

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009