शनिवार, 28 नवंबर 2009

मिथिला कवि कोकिल विद्यापति


मिथिलाक भूमि अत्यंत प्राचीन कालसँ बौद्धिक क्रियाकलाप आ विवेचन (तर्क-वितर्क) लेल विख्यात अछि । एहि ठामक मैथिली भाषा बड्‌ड ललितगर अछि सम्प्रति सभ भाषामे अनेकानेक विधाक अन्तर्गत प्रचुर विकास भ’ रहल अछि । मैछिली एहि दौड़ में पछुआएल नहि अछि । पद्यक क्षेत्र मे महाकवि विद्यापति अमर छथि एहि आलेख मेम साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित विद्यापतिक जीवनी केँ संक्षिप्त अंश पाठक लोकनिक लेल प्रस्तुत अछि- “विद्यापति भारतीय साहित्यक एकटा अत्यंत उत्कृष्ट निर्माता छलाह । जाहि कालमे संस्कृत समस्त आर्यावर्त्तक सांस्कृतिक भाषा छलि, ओ अपन क्षेत्रीय बोली केँ मधुर आ मनोरम काव्यक माध्यम बनौलनि आ साहित्यक भाषा जेकाँ ओहिमे अभिव्यक्‍तिक क्षमता जगा देलनि । ओ एकटा नव ढ़ंगक काव्य-परंपराक आरंभ कयलनि जे उनका लेल अनुकरणीय भेल आ आर्यावर्त्तक एहि भागक एहन कोनो साहित्य नहि अछि जे हुनक प्रतिभा आ रचना कौशलक गंभीर प्रभाव क्षेत्रमे नाहि अबैत हो । ओ उचिते मैथिल कोकिल अथवा मिथिलाक कोयल कहल गेलाह अछि कारण जे हुनक कल-कूजन सँ आधुनिक पूर्वोत्तर भारतीय भाषा सभक काव्यमे वसंतक आगमन भेल ।
विद्यापति, जिनक आनुवंशिक उपनाम ‘ठाकुर’ सँ घोतित होइत अछि जे ओ अचल सम्पत्तिक स्वामी रहथि, शुक्ल यजुर्वेदक माध्यन्दिन शाखाक काश्यप गोत्रीय मैथिल ब्राह्यण परिवार में जन्म लेने रहथि । दरभंगा सँ लगभग १६ मील उत्तर-पश्‍चिममे अखनो स्थित समृद्ध गाम विसफी मे एहि परिवारक जड़ि रहैक आ विद्यापतिक जन्मक समयमे ई परिवार ओही गाममे रहैत छल जाही लेल ई परिवार आ वंश विसईवार विसफीक नामसँ जानल जाइत अछि । ई एहन विद्वान राजपुरूष लोकनिक परिवार छल जे मिथिलामे अपन धर्मशास्त्रीय ज्ञानक लेल प्रसिद्ध छलाह आ कर्णाट वंशीय राजा लोकनिक दरबारमे विश्‍वासयोग्य ओ उत्तरदायित्व पद पर आसीन रहथि । विद्यापति एकटा दुर्लभ प्रतिभा रहथि जे शाश्‍वत प्रेमक गायकक रूपमे अमर छथि, मुदा संगाहि मनुक्ख आ राजपुरूषक रूपमे अपन व्यक्‍तित्वक सम्पूर्णताक कारणो ओ कम स्मरण नहि कयल जाइत छथि । जहिया विद्यापतिक जन्म भेलनि ताहि समयमे मिथिलामे एकटा पैघ सामाजिक आ बौद्धिक पुनुरूत्थानक नायक लोकनिक अही तरहक परिवार रहनि, जकर ओ एकटा समर्थ अंकुर रहथि ।
विद्यापतिक जन्म विसफी नामक गाममे भेल रहानि जे कि हुनक परिवारक वंशधर लोकनिक स्मरणक अनुसार हुनका लोकनिक पूर्वजक डीह ग्राम छलनि फलतः समाजक नव गठनक कालमे बिसफीकेँ एहि परिवारक मूलग्राम मानि लेल गेल आ एअहि तरहेँ ई सभ विसईवार कहयलाह । विद्यापति जीवन भरि विसफीमे रहलाह आ जखन शिवसिंह गद्‌दी पर बैसलाह तखन राजा शिवसिंह राज्यक प्रति महत्वपूर्ण सेवाक लेले कबि केँ इएह ग्राम (बिसफी) दानमे द‍ देलाखिन । एहि (खैरातक) उपहारक उपयोग करैत विद्यापतिक वंशज बसफिए में ओहि समय धरि रहलाह, जखन कि ३०० बरख पूर्व ओ लोकनि मधुबनीक निकटस्थ गाम सौराठ जाकर बसि गेलाह, जतऽ ओ सभ अखनो विद्यमान छथि । अंग्रेज सभक आगमन धरि ई गाम एहि परिवारक कब्जा में रहल ।
मैथिलीक महानतम कवि विद्यापति ठाकुर ई. सन १३५० सँ १४० ई. क बेच भेल रहथि ओ पश्‍चिम बंगालक सीमावर्त्ती बिहार प्रदेशक पूर्वी भूभागमे रहनिहार पचास लाख सँ अधिक लोक द्वारा बाजल जाइत मैथिली भाषा में रचना कयलनि । विद्यापति अपन ८०० वैष्णव आ शैव पदसभ किंवा गीत सभक लेल विख्यात छथि, जकर उद्धार तड़िपत्रक भिन्‍न-भिन्‍न पांडुलिपि सभसँ कयल गेल ओ संस्कृत, अवहट्‌ट (अपभ्रंश) आ मैथिलीक विद्वान रहथि । हुनक गीत सभ रमणीक चारूता आ शालीनताक ललित अंकन आ लद्यु चित्र-रूपक वर्णनसँ परिपूर्ण अछि । रविन्द्रनाथ ठाकुर कहब छनि जे “विद्यापति आनन्दक कवि रहथि आ प्रेमे हुनका लेल जगतक सारतत्व रहनि ।” ओ अपन गीत सभके संगीतवद्धो कयने रहथि, कारण जे ओ शिवसिंह राज्यकालमे ३६ वर्ष धरि राजकवि रहथि । अपन गूजैत आ प्रभावशाली गीत सभक अतिरिक्‍त ओ ‘पुरूष परीक्षा’, कीर्तिलता, गोरक्ष प्रकाश’, मणिमंजरी नाटिका’, ‘लिखननावली’, ‘दानवाक्‍यावली,’ ‘गंगा वाक्‍यावली’, ‘दुर्गाभक्‍ति तरंगिणी’, ‘विभासागर’, भूपरिक्रमा’, ‘शैवसर्वस्वार’ सन कृतियों केर रचना कयलनि ।
विद्यापति मैथिलीमे जाहि नवीन धारक सूत्रपात कएलन्हि तकरा समाज आदरक दृष्टिएँ अपनौलक । हुनक रचनाक मिथिलाक संग-संग ओकर समीपर्वर्त्ती प्रान्तहुँमे आदर भेलैक । फल इ भेल जे विद्यापतिक कवि लोकनि हुनक रचनाक आधार पर साहित्य भंडारक श्रीवृद्धिमे योगदान देलन्हि । विषयवस्तु प्रायः सएह रहि गेल जे विद्यापतिक समयमे छल मुदा ओकर चित्रण भिन्‍न-भिन्‍न कवि लोकनि भिन्‍न-भिन्‍न दृष्टिएँ कयलन्हि । यद्यपि विद्यापतिक किछु समय बाद किछु दिन धरि हमरा लोकनिकेँ मैथिली साहित्यिक सामग्रीक अभाव भेटैत अछि । ओहि समयक लिखल ग्रन्थ उपलब्ध नहि अछि किन्तु साहित्यक स्त्रोत एकदम सुखा नहि गेलैक । साहित्यक धारा कोहुना चलैत रहलैक । तकर प्रमाण हमरा लोकनिकेँ नेपाल एवं आसाममे उपलब्ध नाटक सभसँ होइत अछि । विद्यापतिक पश्‍चात्‌ नेपालमे अनेक नाटकक रचना भेल जकर लेखक लोकनिमे किछु मैथिल कवि तथा नेपालक राजा लोकनि छलाह । ओहि नाटक सभक भाषा पूर्णतः मैथिली छैक, हँ कतहु-कतहु ओहिमे नेपालमे प्रचलित नेवारी भाषाक प्रयोग भेटैत अछि । विद्यापतिक अनुकरण पर हुनकहि शैली पर हुनकहि भाषामे गीतक रचना होमय लागल तथ अई अनुकरण ततेक व्यापक भेल जे विश्‍वकवि पर्यन्त एहि अनुकरणमे रचना कयलन्हि मुदा अनुकरण तँ अनुकरण थिक । भाषान्तर भाषी जखन विद्यापतिक भाषाक अनुकरण प्रारंभ कयलन्हि तँ ने ओ विद्यापतिक भाषा रहि गेल आने अनुकरणकर्त्ता लोकनिक भाषा । दुनू मीलि एकटा कृत्रिम भाषाक जन्म देलनि ।
ओहि परम्पराक अनुयायी छथि जाहि मे कविता केँ मानव-जीवनक सार्वजनीय तत्वक अभिव्यक्‍ति मानल गेल अछि । प्रकारान्तर सँ कहि सकैत छी जे ई मानवीय जीवनक आदर्श रूप थिक । मनुष्यक चरित्र, भावना आ कार्यक इन्द्रियगम्य आदर्शबिम्ब थिक, आ ई सब ‘मिथ्या’ थिक । श्रृंगार रसक गीत हो वा करूण ओ शांतरसक, विद्यापति वस्तुनिष्ठ छथि आ कखनो अपन व्यक्‍तिगत अनुभवक आधार नहि लैत छथि । परकीयाक प्रेमक गीतक संग हम नचारीक कोन तरहेँ सामंजस्य कऽ सकैत छी? विद्यापतिक गीत मे एहि तथ्य केँ स्पष्ट करयवला एहेन किछू नहि अछि जे हुनक बीएतल जीवन केँ रेखांकित करैत हो, मुदा हुनक प्रेमगीत कँ हम सभ एहि रूप मे नहि लैत छी । शांत रसक दृष्टिकोण सँ ई मानव-जीवनक सामान्य चित्र थिक । विद्यापतिक गीत विशिष्ट मनोदशाक सृष्टि थिक । कविक रूप मे ओ अपन रूचिक कोनो विषय पर अनुभूतिक तीव्रताक संग लिखि सकैत छलाह । ओ हार्दिकताक अतल तल मे डुबि कऽ लिखैत छलाह । हुनक हदय जाहि रस मे डूबल रहैत छल तेहने गीत ओहि सँ अनुस्यूत होइत छल । हुनक गीत मे व्यक्‍त भावना संसारक औसत आदमीक सामान्य अनुभव पर आश्रित अछि । तें ई कहब अतिशयोक्‍ति होयत जे ई कविक जीवनानुभवक परिणाम थिक जे ओ वृद्धवस्था मे पछता रहल छथि । विद्यापतिक सदृश प्रतिहावान कवि मनुष्यक एहि सामान्य दुर्बलता केँ देखि-बुझि सकैत छल जाहि सँ एकर व्यापक प्रभाव पड़ैक । पश्‍चात्तापक भावना, ग्लानि, जीवनक निःसारता - ई सब शांत रस में अंतर्निहित रूप सँ विद्यापति अपन काव्य मे कयने छलाह, आ हुनक जीवनक ज्ञात तथ्यक आधार पह हम ई विश्‍वास नहि करैत छी जे ई गीत सब विद्यापतिक जीवनगत वा आत्मनिष्ठ अनुभवक देन छल । अपन श्रृंगार-गीत मे ओ तटस्थ वा वस्तुनिष्ठ छलाह । एहि गीत सब में शांत रसक ओतबे परिपाक भेल अछि जतेक प्रेम-गीत मे श्रृंगार रसक । विद्यापति मानव जीवनक निःसारता आ क्षुद्रताक समान रूप सँ दर्शन आ गहन अनुभव कयने छलाह । एहि गीत सब मे अपना प्रति एक प्रकारक उपेक्षाभावक जे दर्शन होइत अछि से ओहिना कविक वैयक्‍तिक नहि अछि जेना नायिकाक लेल नायकक प्रेमावेग । विशिष्टक माध्यम सँ सामान्यक चित्रण काव्यक उच्चतम लक्ष्य रहल अछि आ विद्यापति ओकरा विदग्धतापूर्वह प्राप्त कऽ सकलाह ओ यौन-प्रेम हो वा आध्याय्म प्रेम, जीवनक आनन्दक हो वा निःसारता, चंचलता, क्षुद्रता आ निराशा सँ उत्पन्‍न वैराग्य ।
संस्कृ काव्यक समग्र सौन्दर्य सँ सम्पृक्‍त मधुर आ लयबद्ध गीतक रचयिताक रूप मे विद्यापतिक कीर्ति आश्‍चर्यजनक रूप सँ यत्र-तत्र पसरि गेल । जे केओ एहि गीत केँ सुनलक ओ एकर लयतान सँ मोहित भ‍ गेल । एहि मे व्यक्‍त भावना एतेक सर्वसाधारण छल जे ओ सौन्दर्यानुभूतिजनित आनन्द सँ अपरिचित सामान्य स्त्री-पुरूष केँ सेहो ओकर अनुभूति प्रदान कऽसकल । एहेन समय मे जखन संस्कृते सुसंस्कृत लोकक भाषा छल आ मिथिला सन क्षेत्र जतऽ संस्कृतक अतिरिक्‍त अतिरिक्‍त अन्य कोनो भाषा मे लिखब पवित्रताहरणक सदृश छल, विद्यापतिक ओहि प्रदेशक लोक द्वारा बाजल जायवला भाषा मे लिखबाक साहस आ आत्मविश्‍वास देखौलनि । ओहि समयक पुराणपंथी पंडित द्वारा लोक-भाषा में लिखबाक कारणें विद्यापतिक तिरस्कार कयल गेल, किन्तु जखन ओ देखलनि जे ओएह काव्य विद्यापति केँ अद्वितीय लोकप्रियता आ अभूतपूर्व कीर्ति प्रदान कयलक अछि तखन उदात्त मस्तिष्कक अन्तिम दुर्बलता’ हुनका विद्यापतिक पदचिन्हक अनुसरण करबाक लेल प्रेरित कयलक । विद्यापतिक नमूना पर गीतक रचना करब मिथिलाक प्रतिभाशाली पंडितक लेल सेहो एकटा ‘फैशन’ बनि गेल । ई सत्य जे ओ विद्यापतिक अनुकृति सँ बहुत आगू नहि बढि सकलाह, मुदा ई प्रक्रिया अखंडित रूप सँ आगू बढ़ैत रहल आ विद्यापति द्वारा स्थापित परंपरा आ बाट पर मैथिली साहित्य विकसित भेल ।
मिथिलाक बाहर मैथिली साहित्य नेपाल मे लगभग तीन शताब्दी धरि विद्यापति सँ प्रभावित होइत आगू बड़ैत रहल । मिथिलाक कर्णाट राजा सँ अपन वंशक उत्पत्ति मानयवला भातगाँव आ काठमांडुक मल्ल राजा मैथिली साहित्य कें संरक्षण प्रदान कयलनि । ओइनबारक पतनक उपरांत मिथिलाक राजनीतिक अवस्था मैथिलीक विद्वान आ कवि केँ पड़ोसी नेपालक मल्ल राजा सँ संरक्षण मड.बाक हेतु बाध्य कयलक । विद्यापतिक अनुकरण करैत ओ सभ एकटा विशाल साहित्यक निर्माण कयलनि, जाहि मे सब सँ महत्वपूर्ण शुद्ध मैथिली मे लिखल गेल अनेको नाटक अछि । ओ नाटक सभ ओतय नियमित रूप सँ खेलायल जाइत छल । ओ कोनो आधुनिक भारतीय भाषाअ में लिखल गेल प्राचीनतम नाटक थिक अठारहम शताब्दीक मध्य धरि, जखन कि मल्ल शासक केँ हँटाओल गेल छल, मैथिली नेपाल दरबारक साहित्यिक भाषा बनल रहल आ विद्यापति प्रेरणाक एकटा स्रोत । एहि मे सँ अधिकांश साहित्य मे नहि आयल अछि से खेदजनक विषय अछि । आ तेँ ओकरा बारे मे बहुत कम जानकारी अछि, यद्यपि ओ ओतुक्‍का ग्रंथालय सब मे सुरक्षित अछि ।
मुदा विद्यापतिक सब सँ सशक्‍त प्रभाव बंगालक महान कवि सब केँ प्रेरित कयलक आ बंगला साहित्य केँ ओकर प्रारंभिक अवस्था मे संबर्धन कयलक । बंगाल मे विद्यापतिक कथा वस्तुतः बहुत रमनगर अछि । बहुत समय सँ बंगाल आ मिथिला मे सांस्कृतिक संबंध छल आ ताहि समय मे बंगालक पंडित अपन ज्ञान परिष्कृत करबाक हेतु तथा मिथिलाक महान शिक्षक सब सँ ओकरा आधुनिकतम बनयबाक हेतु मिथिला में अबैत छलाह । तखन जखन ओ फेर अपन घर घुरैत छलाह तखन हुनक ठेर पर विद्यापतिक मोहक गीत रहैत छल । चैतन्यदेव आ हुनक संगीत हेतु ई गीत विचित्र रूप सँ प्रभावशाली सिद्ध भेल किएक तऽ सहजिया संप्रदाय सँ प्रभावित भऽ कऽ ओ यौनाचारक माध्यम सँ दिव्य प्रेमक अनुभव करैत छलाह । विद्यापतिक प्रेम-गीत चैतन्य-संप्रदायक भक्‍ति-गीत बनि गेल आ विद्यापति भऽ गेलाह वैष्णव महाजन । बंगाली वैष्णव मतक एकटा महान प्रवर्त्तक । कीर्त्तन एहि नव संप्रदायक एकटा प्रमुख अंग छल आ विद्यापति सँ पूर्णतः प्रभावित भऽ कऽ अनेक प्रतिभाशाली कवि गीत रचय लगलाह । विद्यापतिक अनुसरण करैत काल ओ विद्यापतिक भाषाक अनुसरण सेहो कैरत छलाह । जेँ कि ओ शुद्ध मैथिली नहि लिखि सकैत छलाह तें हुनक भाषा मैथिली आ बंगलाक एकटा अद्‌भुत मिश्रण छल जे बाद मे ब्रहबोली कहाबय लागल । चैतन्यदेवक हेतु विद्यापति-एकटा आदर्श बनि गेलाह आ ब्रजबोली काव्य-रचनाक भाषा बनि गेल । जेना-जेना चैतन्यदेवक नवीन संप्रदाय व्यापक होइत गेल तहिना-तहिना विद्यापतिक गीत सेहो ओही संग पसरैत गेल आ उड़ीसा ओ असम तक तथा सुदूर ब्रजभूमि तक विद्यापतिक दिव्य-प्रेमक एकटा महान प्रवर्त्तक मानल जाय लगलाह । गीत भक्‍तिगीतक प्रतिरूप बनि गेल । बंगाल मे सेहो विद्यापति एहि संप्रदायक एकटा नेताक रूप मे सम्मानित होइत रहलाह आ लोक हुनका बंगाल मे जनमल बंगाली बुझैत रहल । सम्मान प्राप्त करबाक दृष्टि सँ कवि अपन गीतक अंत मे विद्यापतिक भनिता लगबैत रहलाह । कम-सँ-कम एकटा कवि ऐहन छलाह जे अपन सबटा कविता विद्यापतिएक नाम सँ रचलनि । ब्रजबोली मे विशाल साहित्य उपलब्ध अछि जे भारतीय साहित्यक गौरव थिक । जखन हम मोन पाड़ैत छी जे ब्रजबोली मिथिलाक एकटा भाषा छि, जे ओतय जनमल लोक सभक द्वारा प्रयोग मे आनल गेल छल आ तकर प्रेरणा विद्यापतिक प्रेमगीत देने छल, तखन हम एहि अद्वितीय घटना पर आश्‍चर्य व्यक्‍त करैत छी आ विद्यापतिक प्रतिभा सँ मुग्ध भऽ जाइत छी ।
एहि संबंध मे ई उल्लेखनीय अछि जे रवीन्द्रनाथ केँ सेहो हुनक काव्यजीवनक देहरि पर विद्यापति प्रभावित कयने छलाह । ओ ‘भानुसिंहेर’ पदावली लिखलनि जकरा ओ स्वयं मैथिलीक अनुकृति कहैत छथि । एहि तरहें विद्यापतिक युग मिथिला जेकाँ बंगाल मे सेहो १९म शताब्दीक अंत धरि रहल ।
असमक स्वनामधन्य शंकरदेव आ हुनक शिष्य माधव्देव विद्यापतिक प्रत्यक्ष प्रभाव मे आबि कऽ मैथिली मे लिखलनि । यद्यपि हुनक रचना मनोरंजन नाटकक माध्यम सँ वैष्णवमतक प्रचार करबाक हेतु लिखल गेल छल ; तथापि हुनका प्रेरणा विद्यापति सँ भेटल छलनि, जे लोकक हेतु लिखल गेल रचना मे लोकक द्वारा बाजल जायबला भाषाक प्रयोग कयने छलाह ।
लोकक द्वारा बाजय्जायबला भाषा मे काव्यानंद केँ व्यक्‍त आ संचारित करबाक प्रतिभा एतेक लोकप्रिय भेल, काव्याभिव्यक्‍तिक रूप मे मोहक गीतक उपयोग करबाक रचना-चातुर्य एतेक आकर्षक सिद्ध भेल जे विद्यापति द्वारा स्थापित परंपराक अनुगमन अधिकांश महान कवि कालांतर मे कयलनि । अन्य कविक तऽ कथे कोन, सूरदास, मीरा, तुलसीदास, कबीर सेहो विद्यापति सँ प्रभावित भेलाह भने ओ प्रभाव परोक्षेरूप मे किएक ने पड़ल हो ।
विद्यापति मैथिल पुनर्जागरणक दीप्ततम देन छलाह । ओ व्यवसाय सँ कवि नहि छलाह । हुनका कतेक प्रकारक रूचि छलनि । हुनक दृष्टिकोण अत्यंत उदार छल । हुनक विचार समय सँ बहुत आगाँ छल । अत्यंत खेदजनक विषय थिक जे हुनक बाद मिथिलाक सांस्कृतिक अधःपतन होइत गेल । परिणाम भेल जे व्यक्‍तिक रूप मे विद्यापति केँ द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त केँ बिसरि देल गेल आ ओ एकटा पुराण कथा, एकटा उपाख्यान मात्र बनि कऽ रहि गेलाह । मुदा जहिया सँ ओ अपन चारूकातक लोकक लेल मधुर गीत रचलनि, तहिया सँ कविक रूप मे हुनक यश कहियो कम नहि भेलनि । विद्यापति एखनो एकटा कविक रूप मे जीवत छथि आ जीवित रहताह । ओ भारतीय साहित्यक अत्युत्कृष्ट निर्माता रहलाह अछि आ भारतीय साहित्यक इतिहास मे ओहिना अमर रहताह ।
- गोपाल प्रसाद
gopal.eshakti@gmail.com
mobile:09289723145

शनिवार, 7 नवंबर 2009

हिंदी ,मैथिली , मिथिला , बिहार ओ मैथिल लोकनि सं अपेक्षा


हिंदी केर प्रचार - प्रसार ओ विकासक लेल केंद्रीय हिन्दी निदेशालय निरंतर प्रयासरत अछि| अपन विभिन्न महत्वपूर्ण योजना सभ आ कार्यक्रम सं हिन्दी कें वैश्विक धरातल पर प्रतिष्ठा दिलयबाक दिशामे सार्थक प्रयास क रहल अछि| निदेशालय द्वारा द्विभाषी, त्रिभाषी आ बहुभाषी कोष आ वार्तालाप पुस्तिका सभकें सीडी रूपमे पाठक लोकनि कें उपलब्ध कराओल गेल अछि |
अष्टम अनुसूचीमे शामिल प्रमुख भारतीय भाषा मैथिली सं सम्बंधित कोनो कार्यक्रम , मैथिली भाषी लोकनि कें हिन्दी सं जोड़वाक प्रक्रिया , हिन्दी-मैथिली-अंग्रेजी कोष वा हिन्दी मैथिली वार्तालाप पुस्तिका केर प्रकाशनक हमारा एखन धरि जानकारी नहि अछि| केंद्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा कोनो संविधान प्रदत्त भारतीय भाषाक प्रति सौतेला व्यवहार की न्यायोचित अछि?
हम माय सीताक जन्मभूमि मिथिला क्षेत्रक दरभंगा जिलाक निवासी छी| दिल्ली मे विगत १२ वर्ष सं बेसी काल सं पत्रकारिता ओ साहित्य सृजनक संगहि संग एकटा आईटी कम्पनी ''नर्मदा क्रिएटिव प्रा. लि. द्वारा प्रकाशित ऑनलाइन हिन्दी मासिक पत्रिका "समय दर्पण " केर संपादकक रूपमे कार्यरत छी| पटना सं प्रकाशित मैथिली त्रैमासिक पत्रिका ' मिथिला महान " केर प्रबंध संपादकक रूप में सेहो योगदान देने छलहुँ | ओहि कालक्रम में प्रमुख लेखक/ कवि लोकनिक रचनाक संग -संग भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् सं प्रकाशित पत्रिका " गगनांचल" केर छ्टा आलेखक मैथिली अनुवाद सेहो कयलहुं |
" मिशन मिथिला " केर संयोजक केर रूप मे मिथिलाक सांस्कृतिक विरासतक संरक्षण -संवर्धन ओ मैथिली अस्मिताक भान करेनाई ओ जागरूकताक अभियान में प्रयासरत छी| किछु काल पूर्व मिशन मिथिलाक दिस सं केंद्रीय हिन्दी निदेशालय (दिल्ली ) , भारतीय भाषा संस्थान ( मैसूर), साहित्य अकादेमी आ मैथिली -भोजपुरी अकादेमी कें कएकटा मांग पत्र पठाओल गेल | मीडिया में सेहो काले काल मैथिली ओ मिथिलाक विकासक लेल प्रखर स्वर अनुगूंजित कयल गेल |
बिहार सरकार मैथिली क विकासमे बाधा उत्पन्न क रहल अछि | इंटरमीडीएटमे पहिने अनिवार्य भाषा क रूप मे मैथिली कें स्थान नहि भेटल मुदा बाद मे ऐच्छिक बिषय केर रूप मे शामिलकय एकर महत्त्व के समाप्त करबाक कुचक्र रचल गेल, जाहि सं अधिकांश छात्र मैथिली क पढाई सं बिमुख भ गेल| ग्याराहमक लेल सरकार द्वारा निर्धारित पोथीक जे नाम देल गेल ओकर प्रकाशन परीक्षा होयबाक मात्र तीन दिन पहिने बाजार मे उपलब्ध भेल जाहि सं बेसी कठिनाई भेल आ मैथिली विषय के घोर आघात लागल | बारहवीं क लेल "तिलकोर भाग-२" केर प्रकाशन सेहो बड्ड बाद मे भेल |इ पोथी नहि त छात्र लोकनि देखलक आ नहि त शिक्षक लोकनि देखलनि कियक त पोथी छपले नहि छल | फरवरी मे एकर परीक्षा भेल आ तखन इ पोथी बाजार मे उपलब्ध भेल | सम्पूर्ण बर्ष बीत गेल , फॉर्म भरल जा चुकल छल मुदा पोथी नहि रहबाक कारणे महाविद्यालय मे एकर पढौनी नहि भेल| एकरा संगे दोसरो पोथी जुडल अछि | बी. पी. एस. सी. पाठ्यक्रम सेहो मैथिलीक लेल उपयुक्त नहि अछि , जाहि मादे प्रश्नकर्ता आ छात्र दुनू के असुविधा भ रहल अछि | राजकमल चौधरी क " ललका पाग " छात्र लोकनि मात्र एकटा कथा ललका पाग पढ़य वा सम्पूर्ण पोथी पढ़य , एकर जिक्र कतहु नहि अछि | पोथीक उपलब्धताक कमी पूर्ण करबामे मैथिली अकादेमी ,साहित्य अकादेमी सक्षम नहि अछि |
यू. पी. एस . सी सेहो उटपटंगे अछि | महाकाव्य सम्पूर्ण होयबाक चाही | मात्र दत्तवती क दू टा सर्ग देबाक की तुक अछि ? जखन की एकर पाठ्यक्रम स्नातकोत्तर स्तरक होयबाक चाही , तीन चारिटा महाकाव्यक नाम होयबाक चाही , जाहि सं विद्यार्थी लोकनि कें छूट भेटय| बड्ड रास उच्च स्तरीय रचनाकार लोकनि कें स्थान नहि भेटल अछि , जकर पुर्नावलोकन अत्यावश्यक अछि |
यू.जी.सी., यू.पी.एस.सी. कें चाही जे सभ विश्वविद्यालय सभ सं मैथिली क शिक्षकक सूची उपलब्ध होबय जाहि सं बिषय सं सम्बंधित समस्या सभक त्वरित निदान भ सकय | स्नातक प्रथम सत्र मे कला, विज्ञान, वाणिज्य संकाय मे नीता झा केर कथा "बाय -बाय अंकल " कें स्थान द क देवशंकर नवीनक संपादकत्व मे एन.बी.टी. द्वारा प्रकाशित एक सय पचीस टाकाक दू टा पोथी पचास अंकक पढाई लेल बोझ डालल गेल एकर कियो विकल्प नहि देल गेल| प्रतिष्ठाक स्तर पर स्नातकोत्तर स्तरक पोथी राखल गेल अछि जखन की अन्य लेखक लोकनिक उच्च कोटिक पोथी उपलब्ध छल |
इग्नू, बी.पी.एस.सी., यू.पी.एस.सी., साहित्य अकादेमी , भारतीय भाषा संस्थान आ यू.जी.सी. केर मैथिलीक कमिटीमे एकटा विशेष कॉकस हाबी अछि | नाम गिनल चुनल अछि - भीमनाथ झा ,नीता झा , अमरजी, रामदेव झा , विद्यानाथ झा विदित, वीणा ठाकुर, अमरनाथ, विभूति आनंद, रमण झा | की ब्रह्मण वर्ग के अतिरिक्त मैथिली मे विद्वान् नहि अछि? दिल्ली केर मैथिली - भोजपुरी अकादेमी सेहो काईस्तवाद मे जकरल अछि| की ऐना मे मैथिली केर सर्वांगीण विकास होयत? प्रश्न इ अछि जे एकरामे कालक्रम अनुसार परिवर्तन कियक नहीं होयत अछि ? एहि लेल मैथिली सं जुडल सभ लोकनि कें जागय पडत |सभ सं नीक होयत जे मैथिलीक शिक्षा देनिहार वा जुडल सभ टा सरकारी वा गैरसरकारी संस्था ऑनलाइन भ जाय , कियक त जखन धरि मैथिली ,नव तकनीक इन्टरनेट सं नहीं जुड़त ओकर चुनौती बढ़बे करत | एहि लेल मैथिल संस्था सभ कें पुरान शैलीक स्थान पर नव राह पर चलय पडत|
(लेखक "मिशन मिथिला " केर संयोजक आ ऑनलाइन हिंदी मासिक पत्रिका "समय दर्पण " केर संपादक छथि) gopal.eshakti@gmail.com, Mob: 09211309569

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

सामाजिक परिवर्तनक संदर्भमे मैथिलीक दशा ओ दिशा


साहित्यिक काज समाजक यथार्थ चित्रण होयत अछि । हमरा बुझवामे मैथिली साहित्य एकरासँ वंचित अछि । मैथिली साहित्यमे सामाजिक परिवर्तनक स्वर किछु आलेखमें भेटैत अछि मुदा एहि तरहेँ साहित्यिक चित्रण पुरातनवादी रचाकार लोकनिकेँ नहि पचैत अछि । वैश्‍वीकरणक प्रभाव मैथिली साहित्य पर सेहो पड़ैत अछि । मैथिली पत्रकारिताक सिद्धान्तक निर्वहनकेँ फूसि दंभ भरयवला जे कहबालेल सबहक बात करैत अछि एहि सिद्धान्त पर चलबाक साहक किनकोमे नहि छैन्ह । पटना सँ प्रकाशित समय-साल नामक मैथिली द्वैमासिक पत्रिकाक अस्तित्व दीर्घजीविताक लेल मसाला पर टिकल अछि । एहि तरहक साहित्य सृजन दुकानदारहिटा मात्र अछि । दलविशेषसँ प्रभावित रचनाकार ओ संपादकक लेखनी एखनहुँ ओकर चक्रव्यूहकें तोड़वामे समर्थ नहि अछि । हिन्दीमे दलित साहित्यिक सुजन नीक जकाँ भऽ रहल अछि मुदा मैथिली साहित्य एखनहुँ एकरासँ परिपूर्ण नहि भऽ सकल अछि जखन एहि वर्गकचर्चा मैथिलीमे नहि हेतैक तखन एहि उपेक्षिक वर्गक समर्थक भाषायी समृद्धिक लेल कोना जुड़त ? गामघरमे सर्वहारा मजदूर लोकनि ओ कथित छोटका जातिक प्राणिये एहि भाषाके वास्तवमे जियाकऽ रखने अछि । मैथिली अकादमीसँ प्रकाशित ओ डॉ. मंत्रेश्‍वर झा द्वारा रचित कविता संग्रह अनचिन्हार गाम मे एकर झलक दृष्टिगोचर भेल मुदा एकर बादक रचनामे एहि दृष्टिकोणक सर्वथा अभाव भऽ गेल अछि । समाजमे आइ मैथिलीक संदर्भमे प्रचलित अछि जे इ ब्राह्मणक भाषा थिक मुद्दा ओ गप्प दुष्प्रचारटा मात्र अछि । एकटा गंभीर पाठकक रूपमे हम जनैत छी जे जियाउर रहमान जाफरी कैसर रजा, मंजर सुलैमान, मेघन प्रसाद, महेन्द्रनारायण राम, देवनारायण साह, अच्छेलाल महतो, सुभाषचन्द्र यादव, महाकांत मंडल, अभय कुमार यादव, बुचरू पासवान, हीरामंडल, सुरेन्द्र यादव शिवकुमार यादव, बिलट पासवान विहंगम आदि अपन साहित्य सृजनतासँ मैथिली साहित्यके समृद्धि प्रदान करबा लेल सक्रिय छथि । पटनामे मैथिलीक समर्पित संस्था चेतनासमितिकेँ दलित महिला अमेरिका देवी ओ तिलिया देवीक सम्मानक माने की अछि ? वास्तवमे मैथिली भाषायी क्षेत्रक दलित महिलाक सम्मानसँ दलित दर्गक भाषा-भाषी लोकनिक समर्थन अवश्‍ये भेटत । एहि प्रयासकें अन्य संस्थाकें अपनैबाक आवश्यकता अछि । कतेक आश्‍चर्यक गप थिक जे नोबेल पुरस्कारक चयन समितिकें एहि वर्गक कृतित्व ओ व्यक्‍तित्व पर खुजल नजर अछि मुदा मिथिलाओ मैथिलीक संस्था एहि विषय पर आँखि मुनने अछि । बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषदक अध्यक्ष डॉ. किशोर कुणाल एहि विंदु पर केन्द्रित भक दलित देवो भव पुस्तकक रचना कयलनि जकर मैथिली अनुवाद होयबाक चाही । मैथिली साहित्यक बहुआयामी प्रतिभाक उपन्यासकार, कवि, नाटककार आ एहि साहित्यकेँ अपन अपरिमित साहित्यिक रचनाएँ उर्वर बनौनिहर डॉ. ब्रजकिशोर वर्मा मणिपद्म अपन विविध रचना ओ स्वभावगत विशिष्टताक कारणे अत्यंत लोकप्रिय भेलाह । हुनक लोकगाथात्मक उपन्यास मिथिलाक लोकसंस्कृतिकेँ समेटने अछि । लोकिक विजय, नैका बनिजारा, रायराणपाल, राजा सलहेस, लवहरि-कुशहरि, दुलरा दयालक रचना कय मैथिलीक सर्वाणीण विकास, भाषायी समृद्धता ओ लोकप्रियताके बढ़यबामे अपन अविस्मरणीय योगदान देलनि । हुनक उपन्यासक वातावरण किंवा विषयवस्तुमे ओ एहन पात्रक जीवन परिचायक प्रदर्शन कएलन्हि जे अपन-अपन वर्ग समुदाय ओ वर्ण व्यवस्थाक अंतर्गत जीवनयापन करबामे महत्वपूर्ण स्थान रखैत अछि । नैका बनिजारामे वर्णिक समाजक व्यापकतातँ अछिए संगहि धोबी, हजाम, ब्रह्मण, क्षत्रिय आदिक उल्लेख सेहो भेल अछि । राजा सलहेसमे दुसाघक शौर्यगाथाक वर्णन कएने छथि । लवहरि-कुशहरिमे ब्राह्मण द्वारा पूजा-पाठक विधा ओ मील-मलाह आदिक चर्चा सेहो भेल अछि । वीर क्षत्रिय राय रणपालक कथासँ सम परिचिते छी । समाजमे धनी ओ गरीबमे की अंतर अछि, तकर सूक्ष्म परण मणिपद्मजीकेँ छलन्हि । ग्रामीण जीवनयापनकेँ कारणे हुनक लेखनीमे ग्राम्यसमाजक मर्मज्ञता दृष्टिगत होयत अछि । अट्टालिकामे रहनिहार झुग्गी-झोपड़ीमे रहि कए जे चित्रण झोपड़ीक करताह ताहिमे अंतर निश्‍चित होयत मणिपद्मक रचनाक पात्र यादव, दुसाघ, मलाह, चमार, धोबी, वाणिक आदि चुनलैन्हि तकर कारण सामन्ती शोषणक धोर विरोधी हुनक मानसिकता ओ स्वातंत्र्य प्रेम छल । सामाजिक संरचनाकेँ दृष्टिमे राखि मैथिलीक अपूर्ण भंडारकेँ पूर्ण करबाक सफल प्रयास कयनिहार मणिपद्मक बाद के छथि ? वर्त्तमानमे मैथिलीमे हुनक विलक्षण लेखनशैली, कथामे पात्रक सार्थक निर्वहन ओ भाषाक व्यवस्थित रूप किंचित नहि भेटैत अछि । आइ हुनक शैलीकेँ प्रेरणाश्रोत मानि लेखनी उठयबाक पहलक आवश्यकता अछि । वर्त्तमानमे मणिपद्मक नुकायल, बिसरायल कृतिक पुर्नप्रकाशनक लेल कर्मगोष्ठी, कोलकाताकेँ योगदान प्रशंसनीय अछि । मैथिली प्रकाशकक जिम्मेवारी छनि जे एहि विषयवस्तुकेँ ध्यान राखि ओहन विधाक प्रकाशन करय जकर अभाव थिक । आजुक मैथिलीप्रेमी लोकनिक ध्यान सरगर गीत, नाटक, व्यंग्य ओ शोधपूर्ण आलोचना विधाकेँ प्रति बेसी आकृष्ट भऽ रहल अछि । मैथिलीके लोकप्रिय बनयबाक अभियानमे किछु रचनाकार लागि गेल छथि । आजुक युवावर्गक नब्जकेँ चिन्हबाक उपरान्त हालहिमे मधुकान्त झाक लटलीला बहराएल अछि । निश्‍चित रूपे एहि कदमसँ मैथिलीक पाठकमे वृद्धि हेतैक । वास्तवमे आइ दूएटा वस्तुक बिक्री बेसी अछि- धर्म ओ काम । धर्मपर मैथिलीमे बेसी रचना भऽ रहल अछि मुदा काम पर एखन धरि दुःसाहस कियो रचनाकार नहि कयलनि । आजुक सन्दर्भमे समाजक सही चित्रण वार्त्तालापकें रुपमे लटलीलामे कयल गेल अछि । हालाँकि एकर सभ रचना पटनासँ प्रकाशित समय साल पत्रिकामे लतिकाक छद्‌म नामसँ पूर्वहिमे छवि चुकल अछि । एहि आलेखक प्रसंगमे पं. चन्द्रनाथमिश्र अमरक कहब उल्लेखनीय अछि- एहि माध्यमसँ बहुतोक सड़ल अंतरीक दुर्गन्ध बाहर आबि गेल अछि । यथार्थ नामपर नग्नताकें हम पचा नहि पबैत छी । रूढ़िवादिता, अंधविश्‍वास, छूआछूत ओ संकीर्ण मानसिकताकें विरूद्ध ध्यानमे रखैत आइ मैथिलीमे लेखन होयबाक चाही । स्व. राजकमल चौधरी ओ स्व. प्रभास चौधरीक कृतिकें प्रतिबिम्ब नहि भेटैत अछि । व्यवस्थाक प्रति विद्रोहक स्वर जाहि लेखनमे होयत ओकर स्वागत होयबे करत । आजुक पाठकक मानसिकता बदलैत समयकेँ अनुसारे बदलि रहल अछि । एकर मूल कारण सामाजिक परिवर्तन अछि । एहि परिवतनकेँ दृष्टिमे रखैत जे लेखन नहि होयत ओकरा आजुक पाठक नकारि देत । स्व. हरिमोहनझाक कृति एकर सबसँ पैघ उदाहरण अछि । रसगर, चहटगर, हास्य-व्यंग्य ओ उपेक्षित वर्गक स्वर मैथिली साहित्यमे अनुगूंजित होयत त ओकर लोकप्रियता आ माँग दुनू उत्तरोत्तर बढत. पुरान भाषायी शैलीक स्थान पर नवतुरिया रचनाकारक आलोचनात्मक लेखनकेँ प्रोत्साहन भेटबाक आवश्यकता थिक । गौरीनाथ, अविनाश, पंकज पराशर, श्रीधरम, विमूति आनंद, अमरनाथ, देवशंकर नवीन, मंत्रेश्‍वर झा, प्रदीप बिहारी आदिक रचना एहि वर्गक प्रतिनिधित्व करैत अछि । संक्षेपमे कहल जायतँ मैथिलीक सर्वागीण विकास तखने होयत जखन एकर सभ विधा पर रचना होयत । एखन धरि किछु विधा पर बेसी रचना भऽ रहल अछि मुदा दोसर विधा पर अत्यंत अल्प । एहि तरहे मैथिलेक व्यापकता ओ लोकप्रियता स्वप्नहि बुझना जाइत अछि । मैथिलीमे स्वादक अनुसारे रचनाक ढ़ालय पड़तनि तखने ओकरा सही दिशा भेटत ओ दशा सुधरत । वर्त्तमानमे एहि लेल सबसँ बेसी सक्रिय संस्था भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर ओ साहित्य अकादमी दिल्ली तथा स्वाति फाउंडेशन (प्रबोध-साहित्य सम्मान) आदिक मैथिलीक संवर्धन हेतु प्रयास सराहनीय अछि ।
-गोपाल प्रसाद gopal.eshakti@gmail,com

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

मिशन मिथिला


मैथिली भाषाक प्रेमी आब बिहारे नहि मुदा दिल्ली ,मुम्बई, कोलकाता जकाँ महानगरमे सभसँ बेसी अछि । मिथिलाक निवासी लोकनिक ह्रदयमे पहुनक सत्कारक लेल सभसँ पैघ स्थान अछि । मिथिला अपन मधुरतम भाषा मैथिली आ अपन अनमोल कला -संस्कॄति यथा मिथिला पेंटिंग्स आदिक लेल अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अछि। मिथिला अपन शांत वातावरण ,शांतिप्रियता ओ कुशाग्र बुद्धिमानकेँ जन्म देवय्वलक भूमि रहल अछि ।मिथिलाक प्राचीन वैदिक परंपरा जगत प्रसिद्ध अछि । मिथिलाक पंडित लोकनिक शास्त्रार्थक इतिहासमे अनेक ठाम वर्णन अछि । मिथिलाक प्राचीन कला , सभ्यता, ओ संस्कॄति पर विश्वमे तेजी सँ शोध भ रहल अछि । समस्त मिथिलावासी लोकनिकेँ अपन मिथिला भूमिकेँ प्राचीन परंपरा पर अभिमान अछि। दुखक विषय इ अछि जे ए क्षेत्र सेहो आधुनिकताक चपेटमे आबि चुकल अछि। बदलाबक आँधीक प्रभाव एहि तरहे परल अछि जे लोक अपन प्राचीन समॄद्ध परंपराकेँ बिसरैत जा रहल अछि। संरक्षणक शक्तिएसँ हमरा लोकनि अपन बचाव क सकैत अछि। जदि एहि दिस ध्यन नहि देल गेल तँ प्राचीन मूल्य ओ पूर्वजक अथक परिश्रम , जकरा लेल ओ जुग- जुग धरि कठोर साधना कयने छलाह, ओ समाप्त भ जायत। एहि महत्वपूर्ण काजकेँ मिशन मिथिला नाम देल गेलअछि।मिशन मिथिलाकेँ गतिशीलता प्रदान करबाक उद्येश्यसँ वेबसाइट प्रारंभ कयल गेल अछि । वेबसाइट ओ मिथिला महान पत्रिकाक प्रबन्ध संपादक गोपाल प्रसाद मिशन मिथिला केर संयोजक सेहो छथि। भारतीय सभ्यता-संस्कॄतिमे मिथिलाक योगदान , मिथिलाक सर्वांगीण विकास , फ़राक मिथिला राज्यक प्रासंगिकता ओ बदलाबसँ जुड़ल कतेक अहम विषयवस्तु पर मिथिला मूलक विशेषज्ञ लोकनिकेँ विचारसँ बुझेनाइ हमर प्राथमिकता अछि ।देशक पिछड़ल राज्य बिहारक अति पिछड़ल प्रांत मिथिलामे विकासक संभावना ,उभरैत बिहारक मूल समस्या ,केन्द्र एवं राज्य सरकारक नीति आ ओकर प्रतिपादनक संगे- संग बिहारक नवनिर्माणमे जुटल वीर सभसँ परिचय करेनाइ हमर जिम्मेदारी अछि। दिल्ली केर पहिल उपराज्यपाल आदित्यनाथ झा मिथिला मूल केँ छ्लाह। राजनीतिक कारणे क्षेत्रक मधुरतम भाषा मैथिली ( एखन आठम अनुसूचीमे स्थान प्राप्त )केर संग उदासीन नीति सरकारी स्तर पर अपनाओल जा रहल अछि। दिल्ली केर बाद आब मुम्बई ओ कोलकातामे मैथिली अकादमी केर स्थापना, सभटा विश्वविद्यालयमे मैथिलीक पढौनी, पुस्तकालयमे पाठक लोकनिक लेल मैथिली पोथीक उपलब्धता सुनिश्चित करबाक हेतु जनजागरण ओ सार्थक पहल केनाइए एकर उद्येश्य अछि । मिथिलाक सांस्कॄतिक विरासत केर प्रचार-प्रसारक उद्येश्यक लेल वेबसाईट ओ मिथिला महान पत्रिका लेल अपनेक सहयोग आ समर्थनक आवश्यकता अछि।