शनिवार, 28 नवंबर 2009
मिथिला कवि कोकिल विद्यापति
मिथिलाक भूमि अत्यंत प्राचीन कालसँ बौद्धिक क्रियाकलाप आ विवेचन (तर्क-वितर्क) लेल विख्यात अछि । एहि ठामक मैथिली भाषा बड्ड ललितगर अछि सम्प्रति सभ भाषामे अनेकानेक विधाक अन्तर्गत प्रचुर विकास भ’ रहल अछि । मैछिली एहि दौड़ में पछुआएल नहि अछि । पद्यक क्षेत्र मे महाकवि विद्यापति अमर छथि एहि आलेख मेम साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित विद्यापतिक जीवनी केँ संक्षिप्त अंश पाठक लोकनिक लेल प्रस्तुत अछि- “विद्यापति भारतीय साहित्यक एकटा अत्यंत उत्कृष्ट निर्माता छलाह । जाहि कालमे संस्कृत समस्त आर्यावर्त्तक सांस्कृतिक भाषा छलि, ओ अपन क्षेत्रीय बोली केँ मधुर आ मनोरम काव्यक माध्यम बनौलनि आ साहित्यक भाषा जेकाँ ओहिमे अभिव्यक्तिक क्षमता जगा देलनि । ओ एकटा नव ढ़ंगक काव्य-परंपराक आरंभ कयलनि जे उनका लेल अनुकरणीय भेल आ आर्यावर्त्तक एहि भागक एहन कोनो साहित्य नहि अछि जे हुनक प्रतिभा आ रचना कौशलक गंभीर प्रभाव क्षेत्रमे नाहि अबैत हो । ओ उचिते मैथिल कोकिल अथवा मिथिलाक कोयल कहल गेलाह अछि कारण जे हुनक कल-कूजन सँ आधुनिक पूर्वोत्तर भारतीय भाषा सभक काव्यमे वसंतक आगमन भेल ।
विद्यापति, जिनक आनुवंशिक उपनाम ‘ठाकुर’ सँ घोतित होइत अछि जे ओ अचल सम्पत्तिक स्वामी रहथि, शुक्ल यजुर्वेदक माध्यन्दिन शाखाक काश्यप गोत्रीय मैथिल ब्राह्यण परिवार में जन्म लेने रहथि । दरभंगा सँ लगभग १६ मील उत्तर-पश्चिममे अखनो स्थित समृद्ध गाम विसफी मे एहि परिवारक जड़ि रहैक आ विद्यापतिक जन्मक समयमे ई परिवार ओही गाममे रहैत छल जाही लेल ई परिवार आ वंश विसईवार विसफीक नामसँ जानल जाइत अछि । ई एहन विद्वान राजपुरूष लोकनिक परिवार छल जे मिथिलामे अपन धर्मशास्त्रीय ज्ञानक लेल प्रसिद्ध छलाह आ कर्णाट वंशीय राजा लोकनिक दरबारमे विश्वासयोग्य ओ उत्तरदायित्व पद पर आसीन रहथि । विद्यापति एकटा दुर्लभ प्रतिभा रहथि जे शाश्वत प्रेमक गायकक रूपमे अमर छथि, मुदा संगाहि मनुक्ख आ राजपुरूषक रूपमे अपन व्यक्तित्वक सम्पूर्णताक कारणो ओ कम स्मरण नहि कयल जाइत छथि । जहिया विद्यापतिक जन्म भेलनि ताहि समयमे मिथिलामे एकटा पैघ सामाजिक आ बौद्धिक पुनुरूत्थानक नायक लोकनिक अही तरहक परिवार रहनि, जकर ओ एकटा समर्थ अंकुर रहथि ।
विद्यापतिक जन्म विसफी नामक गाममे भेल रहानि जे कि हुनक परिवारक वंशधर लोकनिक स्मरणक अनुसार हुनका लोकनिक पूर्वजक डीह ग्राम छलनि फलतः समाजक नव गठनक कालमे बिसफीकेँ एहि परिवारक मूलग्राम मानि लेल गेल आ एअहि तरहेँ ई सभ विसईवार कहयलाह । विद्यापति जीवन भरि विसफीमे रहलाह आ जखन शिवसिंह गद्दी पर बैसलाह तखन राजा शिवसिंह राज्यक प्रति महत्वपूर्ण सेवाक लेले कबि केँ इएह ग्राम (बिसफी) दानमे द देलाखिन । एहि (खैरातक) उपहारक उपयोग करैत विद्यापतिक वंशज बसफिए में ओहि समय धरि रहलाह, जखन कि ३०० बरख पूर्व ओ लोकनि मधुबनीक निकटस्थ गाम सौराठ जाकर बसि गेलाह, जतऽ ओ सभ अखनो विद्यमान छथि । अंग्रेज सभक आगमन धरि ई गाम एहि परिवारक कब्जा में रहल ।
मैथिलीक महानतम कवि विद्यापति ठाकुर ई. सन १३५० सँ १४० ई. क बेच भेल रहथि ओ पश्चिम बंगालक सीमावर्त्ती बिहार प्रदेशक पूर्वी भूभागमे रहनिहार पचास लाख सँ अधिक लोक द्वारा बाजल जाइत मैथिली भाषा में रचना कयलनि । विद्यापति अपन ८०० वैष्णव आ शैव पदसभ किंवा गीत सभक लेल विख्यात छथि, जकर उद्धार तड़िपत्रक भिन्न-भिन्न पांडुलिपि सभसँ कयल गेल ओ संस्कृत, अवहट्ट (अपभ्रंश) आ मैथिलीक विद्वान रहथि । हुनक गीत सभ रमणीक चारूता आ शालीनताक ललित अंकन आ लद्यु चित्र-रूपक वर्णनसँ परिपूर्ण अछि । रविन्द्रनाथ ठाकुर कहब छनि जे “विद्यापति आनन्दक कवि रहथि आ प्रेमे हुनका लेल जगतक सारतत्व रहनि ।” ओ अपन गीत सभके संगीतवद्धो कयने रहथि, कारण जे ओ शिवसिंह राज्यकालमे ३६ वर्ष धरि राजकवि रहथि । अपन गूजैत आ प्रभावशाली गीत सभक अतिरिक्त ओ ‘पुरूष परीक्षा’, कीर्तिलता, गोरक्ष प्रकाश’, मणिमंजरी नाटिका’, ‘लिखननावली’, ‘दानवाक्यावली,’ ‘गंगा वाक्यावली’, ‘दुर्गाभक्ति तरंगिणी’, ‘विभासागर’, भूपरिक्रमा’, ‘शैवसर्वस्वार’ सन कृतियों केर रचना कयलनि ।
विद्यापति मैथिलीमे जाहि नवीन धारक सूत्रपात कएलन्हि तकरा समाज आदरक दृष्टिएँ अपनौलक । हुनक रचनाक मिथिलाक संग-संग ओकर समीपर्वर्त्ती प्रान्तहुँमे आदर भेलैक । फल इ भेल जे विद्यापतिक कवि लोकनि हुनक रचनाक आधार पर साहित्य भंडारक श्रीवृद्धिमे योगदान देलन्हि । विषयवस्तु प्रायः सएह रहि गेल जे विद्यापतिक समयमे छल मुदा ओकर चित्रण भिन्न-भिन्न कवि लोकनि भिन्न-भिन्न दृष्टिएँ कयलन्हि । यद्यपि विद्यापतिक किछु समय बाद किछु दिन धरि हमरा लोकनिकेँ मैथिली साहित्यिक सामग्रीक अभाव भेटैत अछि । ओहि समयक लिखल ग्रन्थ उपलब्ध नहि अछि किन्तु साहित्यक स्त्रोत एकदम सुखा नहि गेलैक । साहित्यक धारा कोहुना चलैत रहलैक । तकर प्रमाण हमरा लोकनिकेँ नेपाल एवं आसाममे उपलब्ध नाटक सभसँ होइत अछि । विद्यापतिक पश्चात् नेपालमे अनेक नाटकक रचना भेल जकर लेखक लोकनिमे किछु मैथिल कवि तथा नेपालक राजा लोकनि छलाह । ओहि नाटक सभक भाषा पूर्णतः मैथिली छैक, हँ कतहु-कतहु ओहिमे नेपालमे प्रचलित नेवारी भाषाक प्रयोग भेटैत अछि । विद्यापतिक अनुकरण पर हुनकहि शैली पर हुनकहि भाषामे गीतक रचना होमय लागल तथ अई अनुकरण ततेक व्यापक भेल जे विश्वकवि पर्यन्त एहि अनुकरणमे रचना कयलन्हि मुदा अनुकरण तँ अनुकरण थिक । भाषान्तर भाषी जखन विद्यापतिक भाषाक अनुकरण प्रारंभ कयलन्हि तँ ने ओ विद्यापतिक भाषा रहि गेल आने अनुकरणकर्त्ता लोकनिक भाषा । दुनू मीलि एकटा कृत्रिम भाषाक जन्म देलनि ।
ओहि परम्पराक अनुयायी छथि जाहि मे कविता केँ मानव-जीवनक सार्वजनीय तत्वक अभिव्यक्ति मानल गेल अछि । प्रकारान्तर सँ कहि सकैत छी जे ई मानवीय जीवनक आदर्श रूप थिक । मनुष्यक चरित्र, भावना आ कार्यक इन्द्रियगम्य आदर्शबिम्ब थिक, आ ई सब ‘मिथ्या’ थिक । श्रृंगार रसक गीत हो वा करूण ओ शांतरसक, विद्यापति वस्तुनिष्ठ छथि आ कखनो अपन व्यक्तिगत अनुभवक आधार नहि लैत छथि । परकीयाक प्रेमक गीतक संग हम नचारीक कोन तरहेँ सामंजस्य कऽ सकैत छी? विद्यापतिक गीत मे एहि तथ्य केँ स्पष्ट करयवला एहेन किछू नहि अछि जे हुनक बीएतल जीवन केँ रेखांकित करैत हो, मुदा हुनक प्रेमगीत कँ हम सभ एहि रूप मे नहि लैत छी । शांत रसक दृष्टिकोण सँ ई मानव-जीवनक सामान्य चित्र थिक । विद्यापतिक गीत विशिष्ट मनोदशाक सृष्टि थिक । कविक रूप मे ओ अपन रूचिक कोनो विषय पर अनुभूतिक तीव्रताक संग लिखि सकैत छलाह । ओ हार्दिकताक अतल तल मे डुबि कऽ लिखैत छलाह । हुनक हदय जाहि रस मे डूबल रहैत छल तेहने गीत ओहि सँ अनुस्यूत होइत छल । हुनक गीत मे व्यक्त भावना संसारक औसत आदमीक सामान्य अनुभव पर आश्रित अछि । तें ई कहब अतिशयोक्ति होयत जे ई कविक जीवनानुभवक परिणाम थिक जे ओ वृद्धवस्था मे पछता रहल छथि । विद्यापतिक सदृश प्रतिहावान कवि मनुष्यक एहि सामान्य दुर्बलता केँ देखि-बुझि सकैत छल जाहि सँ एकर व्यापक प्रभाव पड़ैक । पश्चात्तापक भावना, ग्लानि, जीवनक निःसारता - ई सब शांत रस में अंतर्निहित रूप सँ विद्यापति अपन काव्य मे कयने छलाह, आ हुनक जीवनक ज्ञात तथ्यक आधार पह हम ई विश्वास नहि करैत छी जे ई गीत सब विद्यापतिक जीवनगत वा आत्मनिष्ठ अनुभवक देन छल । अपन श्रृंगार-गीत मे ओ तटस्थ वा वस्तुनिष्ठ छलाह । एहि गीत सब में शांत रसक ओतबे परिपाक भेल अछि जतेक प्रेम-गीत मे श्रृंगार रसक । विद्यापति मानव जीवनक निःसारता आ क्षुद्रताक समान रूप सँ दर्शन आ गहन अनुभव कयने छलाह । एहि गीत सब मे अपना प्रति एक प्रकारक उपेक्षाभावक जे दर्शन होइत अछि से ओहिना कविक वैयक्तिक नहि अछि जेना नायिकाक लेल नायकक प्रेमावेग । विशिष्टक माध्यम सँ सामान्यक चित्रण काव्यक उच्चतम लक्ष्य रहल अछि आ विद्यापति ओकरा विदग्धतापूर्वह प्राप्त कऽ सकलाह ओ यौन-प्रेम हो वा आध्याय्म प्रेम, जीवनक आनन्दक हो वा निःसारता, चंचलता, क्षुद्रता आ निराशा सँ उत्पन्न वैराग्य ।
संस्कृ काव्यक समग्र सौन्दर्य सँ सम्पृक्त मधुर आ लयबद्ध गीतक रचयिताक रूप मे विद्यापतिक कीर्ति आश्चर्यजनक रूप सँ यत्र-तत्र पसरि गेल । जे केओ एहि गीत केँ सुनलक ओ एकर लयतान सँ मोहित भ गेल । एहि मे व्यक्त भावना एतेक सर्वसाधारण छल जे ओ सौन्दर्यानुभूतिजनित आनन्द सँ अपरिचित सामान्य स्त्री-पुरूष केँ सेहो ओकर अनुभूति प्रदान कऽसकल । एहेन समय मे जखन संस्कृते सुसंस्कृत लोकक भाषा छल आ मिथिला सन क्षेत्र जतऽ संस्कृतक अतिरिक्त अतिरिक्त अन्य कोनो भाषा मे लिखब पवित्रताहरणक सदृश छल, विद्यापतिक ओहि प्रदेशक लोक द्वारा बाजल जायवला भाषा मे लिखबाक साहस आ आत्मविश्वास देखौलनि । ओहि समयक पुराणपंथी पंडित द्वारा लोक-भाषा में लिखबाक कारणें विद्यापतिक तिरस्कार कयल गेल, किन्तु जखन ओ देखलनि जे ओएह काव्य विद्यापति केँ अद्वितीय लोकप्रियता आ अभूतपूर्व कीर्ति प्रदान कयलक अछि तखन उदात्त मस्तिष्कक अन्तिम दुर्बलता’ हुनका विद्यापतिक पदचिन्हक अनुसरण करबाक लेल प्रेरित कयलक । विद्यापतिक नमूना पर गीतक रचना करब मिथिलाक प्रतिभाशाली पंडितक लेल सेहो एकटा ‘फैशन’ बनि गेल । ई सत्य जे ओ विद्यापतिक अनुकृति सँ बहुत आगू नहि बढि सकलाह, मुदा ई प्रक्रिया अखंडित रूप सँ आगू बढ़ैत रहल आ विद्यापति द्वारा स्थापित परंपरा आ बाट पर मैथिली साहित्य विकसित भेल ।
मिथिलाक बाहर मैथिली साहित्य नेपाल मे लगभग तीन शताब्दी धरि विद्यापति सँ प्रभावित होइत आगू बड़ैत रहल । मिथिलाक कर्णाट राजा सँ अपन वंशक उत्पत्ति मानयवला भातगाँव आ काठमांडुक मल्ल राजा मैथिली साहित्य कें संरक्षण प्रदान कयलनि । ओइनबारक पतनक उपरांत मिथिलाक राजनीतिक अवस्था मैथिलीक विद्वान आ कवि केँ पड़ोसी नेपालक मल्ल राजा सँ संरक्षण मड.बाक हेतु बाध्य कयलक । विद्यापतिक अनुकरण करैत ओ सभ एकटा विशाल साहित्यक निर्माण कयलनि, जाहि मे सब सँ महत्वपूर्ण शुद्ध मैथिली मे लिखल गेल अनेको नाटक अछि । ओ नाटक सभ ओतय नियमित रूप सँ खेलायल जाइत छल । ओ कोनो आधुनिक भारतीय भाषाअ में लिखल गेल प्राचीनतम नाटक थिक अठारहम शताब्दीक मध्य धरि, जखन कि मल्ल शासक केँ हँटाओल गेल छल, मैथिली नेपाल दरबारक साहित्यिक भाषा बनल रहल आ विद्यापति प्रेरणाक एकटा स्रोत । एहि मे सँ अधिकांश साहित्य मे नहि आयल अछि से खेदजनक विषय अछि । आ तेँ ओकरा बारे मे बहुत कम जानकारी अछि, यद्यपि ओ ओतुक्का ग्रंथालय सब मे सुरक्षित अछि ।
मुदा विद्यापतिक सब सँ सशक्त प्रभाव बंगालक महान कवि सब केँ प्रेरित कयलक आ बंगला साहित्य केँ ओकर प्रारंभिक अवस्था मे संबर्धन कयलक । बंगाल मे विद्यापतिक कथा वस्तुतः बहुत रमनगर अछि । बहुत समय सँ बंगाल आ मिथिला मे सांस्कृतिक संबंध छल आ ताहि समय मे बंगालक पंडित अपन ज्ञान परिष्कृत करबाक हेतु तथा मिथिलाक महान शिक्षक सब सँ ओकरा आधुनिकतम बनयबाक हेतु मिथिला में अबैत छलाह । तखन जखन ओ फेर अपन घर घुरैत छलाह तखन हुनक ठेर पर विद्यापतिक मोहक गीत रहैत छल । चैतन्यदेव आ हुनक संगीत हेतु ई गीत विचित्र रूप सँ प्रभावशाली सिद्ध भेल किएक तऽ सहजिया संप्रदाय सँ प्रभावित भऽ कऽ ओ यौनाचारक माध्यम सँ दिव्य प्रेमक अनुभव करैत छलाह । विद्यापतिक प्रेम-गीत चैतन्य-संप्रदायक भक्ति-गीत बनि गेल आ विद्यापति भऽ गेलाह वैष्णव महाजन । बंगाली वैष्णव मतक एकटा महान प्रवर्त्तक । कीर्त्तन एहि नव संप्रदायक एकटा प्रमुख अंग छल आ विद्यापति सँ पूर्णतः प्रभावित भऽ कऽ अनेक प्रतिभाशाली कवि गीत रचय लगलाह । विद्यापतिक अनुसरण करैत काल ओ विद्यापतिक भाषाक अनुसरण सेहो कैरत छलाह । जेँ कि ओ शुद्ध मैथिली नहि लिखि सकैत छलाह तें हुनक भाषा मैथिली आ बंगलाक एकटा अद्भुत मिश्रण छल जे बाद मे ब्रहबोली कहाबय लागल । चैतन्यदेवक हेतु विद्यापति-एकटा आदर्श बनि गेलाह आ ब्रजबोली काव्य-रचनाक भाषा बनि गेल । जेना-जेना चैतन्यदेवक नवीन संप्रदाय व्यापक होइत गेल तहिना-तहिना विद्यापतिक गीत सेहो ओही संग पसरैत गेल आ उड़ीसा ओ असम तक तथा सुदूर ब्रजभूमि तक विद्यापतिक दिव्य-प्रेमक एकटा महान प्रवर्त्तक मानल जाय लगलाह । गीत भक्तिगीतक प्रतिरूप बनि गेल । बंगाल मे सेहो विद्यापति एहि संप्रदायक एकटा नेताक रूप मे सम्मानित होइत रहलाह आ लोक हुनका बंगाल मे जनमल बंगाली बुझैत रहल । सम्मान प्राप्त करबाक दृष्टि सँ कवि अपन गीतक अंत मे विद्यापतिक भनिता लगबैत रहलाह । कम-सँ-कम एकटा कवि ऐहन छलाह जे अपन सबटा कविता विद्यापतिएक नाम सँ रचलनि । ब्रजबोली मे विशाल साहित्य उपलब्ध अछि जे भारतीय साहित्यक गौरव थिक । जखन हम मोन पाड़ैत छी जे ब्रजबोली मिथिलाक एकटा भाषा छि, जे ओतय जनमल लोक सभक द्वारा प्रयोग मे आनल गेल छल आ तकर प्रेरणा विद्यापतिक प्रेमगीत देने छल, तखन हम एहि अद्वितीय घटना पर आश्चर्य व्यक्त करैत छी आ विद्यापतिक प्रतिभा सँ मुग्ध भऽ जाइत छी ।
एहि संबंध मे ई उल्लेखनीय अछि जे रवीन्द्रनाथ केँ सेहो हुनक काव्यजीवनक देहरि पर विद्यापति प्रभावित कयने छलाह । ओ ‘भानुसिंहेर’ पदावली लिखलनि जकरा ओ स्वयं मैथिलीक अनुकृति कहैत छथि । एहि तरहें विद्यापतिक युग मिथिला जेकाँ बंगाल मे सेहो १९म शताब्दीक अंत धरि रहल ।
असमक स्वनामधन्य शंकरदेव आ हुनक शिष्य माधव्देव विद्यापतिक प्रत्यक्ष प्रभाव मे आबि कऽ मैथिली मे लिखलनि । यद्यपि हुनक रचना मनोरंजन नाटकक माध्यम सँ वैष्णवमतक प्रचार करबाक हेतु लिखल गेल छल ; तथापि हुनका प्रेरणा विद्यापति सँ भेटल छलनि, जे लोकक हेतु लिखल गेल रचना मे लोकक द्वारा बाजल जायबला भाषाक प्रयोग कयने छलाह ।
लोकक द्वारा बाजय्जायबला भाषा मे काव्यानंद केँ व्यक्त आ संचारित करबाक प्रतिभा एतेक लोकप्रिय भेल, काव्याभिव्यक्तिक रूप मे मोहक गीतक उपयोग करबाक रचना-चातुर्य एतेक आकर्षक सिद्ध भेल जे विद्यापति द्वारा स्थापित परंपराक अनुगमन अधिकांश महान कवि कालांतर मे कयलनि । अन्य कविक तऽ कथे कोन, सूरदास, मीरा, तुलसीदास, कबीर सेहो विद्यापति सँ प्रभावित भेलाह भने ओ प्रभाव परोक्षेरूप मे किएक ने पड़ल हो ।
विद्यापति मैथिल पुनर्जागरणक दीप्ततम देन छलाह । ओ व्यवसाय सँ कवि नहि छलाह । हुनका कतेक प्रकारक रूचि छलनि । हुनक दृष्टिकोण अत्यंत उदार छल । हुनक विचार समय सँ बहुत आगाँ छल । अत्यंत खेदजनक विषय थिक जे हुनक बाद मिथिलाक सांस्कृतिक अधःपतन होइत गेल । परिणाम भेल जे व्यक्तिक रूप मे विद्यापति केँ द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त केँ बिसरि देल गेल आ ओ एकटा पुराण कथा, एकटा उपाख्यान मात्र बनि कऽ रहि गेलाह । मुदा जहिया सँ ओ अपन चारूकातक लोकक लेल मधुर गीत रचलनि, तहिया सँ कविक रूप मे हुनक यश कहियो कम नहि भेलनि । विद्यापति एखनो एकटा कविक रूप मे जीवत छथि आ जीवित रहताह । ओ भारतीय साहित्यक अत्युत्कृष्ट निर्माता रहलाह अछि आ भारतीय साहित्यक इतिहास मे ओहिना अमर रहताह ।
- गोपाल प्रसाद
gopal.eshakti@gmail.com
mobile:09289723145
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ahank lekh neek acchi. Hamar shubhkamna
जवाब देंहटाएंDr. Dhanakar Thakur